Tuesday, May 18, 2010


टी-20 वर्लड कप नहीं तो अजलन शाह कप जीता

भारत भले ही टी-20 वल्र्ड कप पर कबजा नहीं कर पाया मगर हाकी मौजूदा चैंपियन ने सुलतान अजलन शाह जीत लिया है। भारत को यह कप साउथ कोरिया के साथ बांटना पडा। इन दोनों टीमों के बीच फाइनल मैच शुरू हुआ लेकिन छह मिनट बाद ही तेज बारिश के वजह से रोकना पडा। काफी देर के इंतजार के बाद आयोजकों ने मैच समाप्ति की घोषणा कर दी। 1983 में शुरू हुये इस टूर्नामेंट में यह पहले मौका था जब दो टीमों को संयुक्त रूप से विजेता घोषित किया गया है। इसके साथ ही भारत के राइट फुलबैक सरदार सिहं को टूर्नामेंट का सर्वश्रेष्ठ खिलाडी घोषित किया गया।

नई दिल्ली स्टेशन पर भगदड से रेलवे की खुली पोल

अभी शुरूआत हुई नहीं कि नई दिल्ली स्टेशन पर व्यवस्था चारो खाने चित नजर आई। रवीवार को रेल्वे स्टेशन पर भगदड मच गई जिसमें 2 लोगों की मौत हो गई और 8 घायल हो गये। यह हादसा दो ट्रेनों सप्तक्रांति एक्सप्रेस और विक्रमशिला के यात्रियों के बीच ट्रेन पकडने की हडबडी की वजस से सामने आया। दरअसल दोनों ट्रेनों के आने का समय तकरीबन एक ही है। दोनों के आने से पहले घोषणा हुई कि सप्तक्रांति प्लेटफार्म नं0 13 पर आयेगी और वक्रमशिला प्लेटफार्म नं0 12 पर। दोनों ट्रेनों के यात्री नीयत लेटफार्म और फुटओवर ब्रिज पर ट्रेन की आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। लेकिन ट्रेनें ठीक उसकी उलट प्लेटफार्मों पर आयी। यानीकि सप्तक्रांति प्लेटफार्म नं0 12 और प्लेटफार्म नं0 13 पर आगई। दोनों ट्रेनों के छूटने का समय करीब पौने तीन बजे था। इसी लिये लोगों के ट्रेनों को लेकर अफरातफरी मच गई और यह हादस हो गया। इस हादसे पर रेल मंत्री मामता बैनर्जी का बयान आया, ‘‘यह प्रशासन की नाकामी नहीं है, इसके लिये लोग भी जिम्मेदार हैं। ऐसे हालात को कंट्रोल करना कठिन है।’’

हादसे के प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि जिस फुटओवर ब्रिज की सीढीयों पर यह हादसा हुआ, वहां तिल रखने की जगह भी नहीं थी। दरअसल, इस स्टेशन का यही एक ऐसा फुटओवर ब्रिज है, जो यात्रियों का सबसे ज्यादा बोझ ढोता है। चुंकि यही फुटओवर ब्रिज दोनों सिरों पर (अजमेरी गेट और पहाड गंज) की मेन एंट्री है इसलिये इस पर सबसे ज्यादा भीड होती है। हालांकि निजामुद्दीन एंड पर भी एक फुटओवर ब्रिज है लेकिन वह भी अधुरा है। यही वजह है कि उसका इस्तेमाल नहीं हो पाता है। लगभग पांच साल पहले जब इस तरह भगदड मची थी, तब इसकी जांच के लिये एक कमेटी का गठन किया गया था। इस कमेटी ने अपनी रीपोर्ट में कहा था कि आधे अधूरे फुटओवर ब्रिजों का निर्माण कार्य पूरा किया जाये जिससे कि 1 नं0 फुटओवर ब्रिज पर यात्रियों के बोझ को कम किया जा सके। लेकिन पांच साल बीत जाने के बाद भी इसका निर्माण कार्य अभी तक चल रहा है।

राजनीति का नया दाव - जाती आधारित जनगणना

मैं यू0 पी0 के एक शहर गोरखपुर से ताल्लुक रखता हूं। यह शहर बडा तो है मगर राजधानी लखनऊ की तरह अखबारों की सुर्खियों में नहीं रहता है। लेकिन राजनीतिक हल्कों में शहर को काफी तवज्जो मिलती है। यहां अक्सर लोग आपको घरों में आफिस के खाली वक्त में और चाय की दुकानों पर तो खास कर लोग राजनीति पर अपने विचारों का आदान प्रदान करते मिल जाते हैं। जब मैं छोटा था तब मैं ये सोचा करता था कि बडों को कोई और काम नहीं है क्या जो र्सिफ राजनीति पर बातें करते हैं पर जब मैं बडा हुआ तो कुछ मुद्दों पर मैंने भी खुद को राजनीति पर बात करते पाया। मैंने र्सिफ खुद को ही नहीं बल्कि अपने दोस्तों और अपने ही उम्र के कई और लडकों को राजनीति पर विचार विर्मश करते पाया।

अगर मैं र्सिफ शहर की बात न करके पूरे राज्य की बात करूं तो ये राज्य संप्रदायिक्ता में बंटा हुआ है। इसी वजह से राज्य में संप्रदायिक दंगे भडकाना कोई कठिन कार्य नहीं है। अक्सर ये दंगे राजनीतिक लाभ के लिये भडकाये जाते हैं। इस बात को लोग भी जानते हैं मगर सब के बावजूद दंगे की आग से खुद को बचा नहीं पाते हैं और इसी आवेग में आ कर वो कुछ ऐसा कर बैठते हैं जो वे नहीं करना चाहते थे या उल्हें नहीं करना चाहिए था। इस पर बाद में राजनीति भी खूब होती है और विपक्ष को बैठे बिठाये मौजूदा सरकार के खिलाफ एजेंडा मिल जाता है। इस एजेंडे को चुनाव के दौरान मुद्दा बनाकर खूब राजनीतिक रोटियां भी सेकी जाती हैं।

इस जाति आधारित राजनीति को और बढावा देने के लिये कुछ पार्टियों ने जाति आधारित जनगणना करवाने का प्रस्ताव सरकार के सामने रखा जिसे सरकार ने सिरे से खारिज कर दिया। इस पर पार्टी नेताओं ने विरोधा प्रर्दशन किया और संसद की कार्यवाही बीच में ही छोड कर बाहर चले आये। उन्होंने मीडिया के सामने बयान दिया कि जब देश में विभिन्न जाती के लोग रहते हैं ता जनगणना जाति के आधार पर क्यों नहीं हो सकती? जब यह एक वास्तविक्ता है तो सरकार इसे क्यों नहीं मान रही है?

देखा जाये तो अगर जनगणना जाति के आधर पर की जाये तो इससे ये जरूर मालूम पड जायेगा कि पूरे देश में और विभिन्न राज्यों में रह रहे नगरिक किस जाती में कितनी संख्या में हैं। इस जाति आधारित जनगणना से लोगों को तो लाभ होने की संभावना तो नगण्य है और सीधे तौर पर लाभ राजनीतिक पार्टियों को होगा जो सीधे साधे जाती आधारित राजनीति करती हैं। इसका सरल शब्दों में अर्थ ये निकलता है जो राजनीति पहले वोट बैंक के तौर पर होती थी वह अब जाति आधारित वोट बैंक पर केद्रिंत हो जायेगी। सपाट शब्दों में राजनीति भी अब और गणित आधारित हो जायेगी। अगर कोई पाटी यह देख रही है कि जीत के लिये उनका वोट बैंक कम पड सकता है तो वह चुनाव प्रचार में वोट खीचने हेतु कुछ और लोक लुभावने वादे कर सकती है। मस्लन मायावती की बहुजन समाज पार्टी जो दलितों की पार्टी मानी जाती है (जो धीरे धीरे दलितों के अलावा अब ब्रहमणों आदि पर भी केंद्रित होती जा रही है और जिसका परिणाम पिछले मुख्यमंत्री चुनाव में बसपा के जीत के तौर देखने को मिला) उसके पास सरकारी आंकडा होगा कि उ0 प्र0 में कितने दलित हैं और कितने अन्य जाति के लोगों की संख्या क्या है। मुलायम सिहं यादव की समाजवादी पार्टी जो मुस्लिम वोटों पर आधारित है उसके पास भी मुस्लिमों (अल्पसंख्यकों) की और अन्य जातियों से संबधित सरकारी दस्तवेज होगा। राम मंदिर और हिंदुत्व को मुद्दा बना चल रही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) हिंदू वोट बैंक और कांग्रेस अपनी जाती आधारित राजनीति खेलेगी। इस तरह की राजनीति में एक विशेष वर्ग को सहूलियत मिलेगी और दूसरा वर्ग सौतेले व्योहार का भावना बढती जायेगी। इसका सीधा असर राज्य सरकारों की नीतियों पर भी पडेगा।

बहुत से नेता इस जाति आधारित जनगणना के पक्ष में एक दूसरे से हाथ भी मिला रहे हैं। वे चाहते हैं कि यह बिल सरकार द्वारा पास हो जाये ताकी उनके हाथ जाति आधारित चाभियां लग जाये और आवश्यक्तानुसार वे राजनीतिक लाभ के लिये इनका इस्तेमाल कर सकें। इससे कुछ ही दिनों में वे लोग जो सरकारी नीतियों से अछूते रह गये, त्रस्त हो जोयेंगे। धीरे धीरे ये भावना उनके अंदर बढती चली जायेगी और हो सकता है कि एक दिन तेलंगाना की तरह लोग जाति आधारित राष्ट्र की मांग कर दें। हमारे राजनेताओं को सोचना होगा कि लोगों को बांटने वाली नीतियों के बजाये उन्हें जोडने वाली बिल बनाये जाये। इन बिलों को भी अपने वेतन वृध्दि के बिल की तरह पूर्ण बहुमत से पारित किया जाये। इसी प्रकार से देश का विकास संभव है अन्यथा ऐसी स्थिति में देश को टूटते देर नहीं लगेगी। हो सकता है जिस देश को हम बडे र्गव से ‘भारत’ कह कर पुकारते हैं उसी राष्ट्र को ‘संयुक्त राष्ट्र भारत’ के नाम से न पुकारना पडे।

Monday, May 17, 2010


अमेरिका के बदले सुर

टाइम्स स्क्वेयर के हमले में पाकिस्तान का नाम आने से अमेरिका बौखला गया था। यहां तक की अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने यहां तक कह डाला था कि अगर इस मामले में पाकिस्तान का नाम की पुष्टि हो जाती है तो उसे इसके गंभीर नतीजे भुगतने पड सकते हैं।

मगर अब पाकिस्तान और आतंकवाद के मुद्दे पर अमेरिका के तेवर बदले नजर आ रहे हैं। जहां उसे पहले धमकी दी जा रही थी वहीं अब पाकिस्तान की सराहना की जा रही है। हिलेरी क्लिंटन का एक और कदम उठाने की जरूरत है। बदले सुर में हिलेरी ने अल-कायदा और उसके चरंमपंथी सहियोगियों के खिलाफ पाकिस्तान कार्यवाही की करते हुए ये बात कही थी।

मगर देखा जाये तो ये बात कुछ हजम नहीं हुई क्योंकि अभी कुछ ही दिनों पहले जो अमेरिका पाकिस्तान को सीधे तौर पर धमकी दे रहा था वही अमेरिका गिरगिट की तरह रंग बदल अब उसकी तारीफ कर रहा है। कहीं सुर में ये बदलाव चीन के वजह से तो नहीं है। क्योंकि जब चीन ने पाकिस्तान को परमाणु सहायता की बात की थी तब भी अंतराष्ट्रिय बिरादरी मौन बनी हुई थी। यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि जब पाकिस्तान ने अमेरिका को भारत की तरह परमाणु संधि को कहा था तब उसने मना कर दिया था।

हवाला से मिली थी हमले की रकम

दुनिया के चैरहे पर हमले के लिये शहजाद को रकम हवाला के जरिये मुहैया करवाये गये थे। इस बात का खुलासा पाकिस्तान के तीन नगरिकों की गिरफतारी के बाद हुआ है।

एफबीआई ने शहजाद के आर्थिक संपर्कों का पता लगाते हुए पश्चिमोत्तर अमेरिका में एशियाई बहुत लांग आईलैंड, बोस्टन सबर्ब और न्यूजार्सी में छापे मारे हैं। इसी दौरान तीन पाकिस्तानी नागरिकों को गिरफतार किया गया। इनमें से दो को बोस्टन से और एक को मेन शहर से गिरफतार किया गया। अमेरिकी अटार्नी जनरल एरिक होल्डर ने कहा कि ये गिरफतारियां जांच का हिस्सा थी। उन्होंने साथ में यह भी कहा कि ये गिरफतारियां किसी नये खतरे की तरफ इशारा नहीं करते बल्कि इन्हें इस लिये गिरफतार किया गया क्योंकि इनके रिश्ते शहजाद के साथ थे। लेकिन हम यह भरोसे से नहीं कह सकते हैं कि ये रिश्ते कैसे हैं। गिरफतार नागरिकों पर इमिग्रेशन नियमों के उल्लंघन का भी आरोप है।

अमेरिकी अखबार वाशिंगटन पोस्ट के मुताबिक ये गिरफतारियां एक शक्स के पूछताछ के बाद हुई हैं। इस शक्स की पहचान गुप्त रखी गई है और इसने खुद को शहजाद का साथी बताया है।

Sunday, May 16, 2010


अभी नहीं ठंडाया कोबाल्ट-60

अभी तक कोबाल्ट - 60 का मामला ठंडाया नहीं लगता। दरअसल 28 के बाद जब से इस मामले में दिल्ली यूनिवर्सिटी का नाम सामने आया है तब से इस मामले ने और उछाल पकडा है।

इस मामले पर अटामिक एनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड (एईआरबी) और दिल्ली पुलिस ने डीयू प्रशासन को एक नोटिस भेजा था। डीयू प्रशासन ने एईआरबी को जवाब दे दिया लेकिन पुलिस द्वारा भेजे गये नोटिस का जवाब अभी तक नहीं आया। हालांकी डीयू प्रशासन ने नोटिस का जवाब देने के लिये थोडा सा वक्त मांगा था जिसे दिल्ली पुलिस ने मंजूर कर लिया था। लेकिन 15 दिन बीत जाने के बाद भी डीयू प्रशासन की ओर से कोई जवाब न पाकर दिल्ली पुलिस ने उन्हें रिमाइंडर नोटिस भेजने का फैसला किया है।

पुलिस के डीसीपी (वेस्ट डिस्ट्रिक) शरद अग्रवाल ने नोटिस डीयू के वीसी से गामा सेल की नीलामी प्रक्रिया के बारे में पूरी जानकारी देने के लिये कहा था। साथ ही साथ पूछा गया था कि इस मामले में एईआरबी की सेफ्टी गाइडलाइंस की अनदेखी क्यों की गई और इसके लिये कौन जिम्मेदार है। पुलिस एईआरबी को भी एक पत्र लिखकर सलाह भी मांगी है कि इस मामाले में रेडियोएक्टिव पदार्थों के उपयोग से संबधित किस किस तरह के कानूनों का उल्लंघन हुआ है। फिलहाल तो इस संबंध में पुलिस ने मायापुरी थाने में केवल लापरवाही से हुई मौतों की धाराओं के तहत केस र्दज किया है, लेकिन यह मामला उतना सामान्य नहीं जितना की दिखता है।

नितिन गडकरी का बेबाक बयान

बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी द्वारा लालू और मुलायम पर दिये एक बयान से राजनितिक गलियारों में हडकंप मच गया है। गडकरी ने अपने बयान में सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव और आर जे डी प्रमुख लालू प्रसाद यादव को कांग्रेस और सोनिया गांधी के तलवे चाटने वाला बताया है। उन्होंने कहा कि ‘‘वे शेर जैसे दहाडने की बातें करते थे लेकिन Û Û की तरह सोनिया और कांग्रेस के घर जा कर तलवे चाटने लगे’’। गडकरी ने ये बयान चंडीगढ में एक रैली को संबोधित करते हुए दिया था। अपने बयान में लालू और मुलायम के लिये गडकरी ने अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया जिसे लिखना उचित नहीं होगा। इसे भारतीय नेताओं की बदजबानी के रूप में देखें ता ज्यादा उचित होगा। अपने इसी भाषण में गडकरी ने काटौती प्रस्ताव के दौरान लालू और मुलायम के लोकसभा से वाकआउट का जिक्र किया और कहा, ‘‘मुलायम सिंह और लालू प्रासद यादव जो यूपीए और सरकार के विरोध की बातें करते हैं, वे भी सीबीआई के सामने जा कर झुक गये।


फिर आनर किलिंग

मुझे याद है, मैंने अपने बचपन में एक फिल्म देखी थी और जो बाद में अक्सर टी0 वी0 पर भी आने लगी, जिसका नाम था ‘दिल वाले दुलहनियां ले जायेंगे’। इस फिल्म के मुख्य किरदार थे शारूख खान और काजोल। यह एक लव स्टोरी थी जिसकी अधिक्तर शूटिंग पंजाब में दिखाई गई है। इस फिल्म में काजोल एक पंजाबी घर में पैदा होती है जो पिता अमरीश पुरी के देख रेख में चलता है। एक दिन काजोल को शरूख से प्यार हो जाता है। ये बात जब अमरीश पूरी को पता चलता है तो वे अपना बोरिया-बिस्तर समेट पंजाब अपने घर लौट जाते हैं। शारूख भी पीछे-पीछे पंजाब पहुंच जाता है। अंत में अमरीश पूरी काजुल का हाथ शारूख के हाथ में दे देते हैं।

यह फिल्म अपने वक्त की सबसे बडी हिट फिल्म थी जिसने न टूटने वाले कई रीकार्ड बनाये। ये फिल्म बाकी जगहों में भी उतनी ही पसंद आयी जितनी की पंजाब में। यही नहीं बल्कि प्रम प्रसंगों पर बनी बाकी फिल्मों को भी पांजाब में बडा ही पसंद किया जाता रहा है।

मगर सबसे बडी विडम्बना यह है कि जहां एक प्यार की कहानी को पंजाब ने सराहा वहीं दूसरी को हमेशा के लिये खत्म कर दिया और हमेशा के लिये ऐसा घाव दे दिया जिसे भरा नहीं जा सकता। मैं बात कर रहा हंू गुरलीन (19 साल) और अमनप्रीत (25 साल) की। दोनों ने गुरलीन के परिवार के मर्जी के खिलाफ जा कर पिछले महीने हरियाण और पंजाब कोर्ट की सुरक्षा में शादी रचा ली थी। ये बात गुरलीन के परिवार में पिता, भाई, और चाचा को नागवार गुजर और मंगलवार को को उन्होंने गुरलीन को उनके खिलाफ जाने की सजा दे दी। इस में अमनप्रीत की मां कुलजीत गेहंू में घुन की तरह पिस गई। तीनों ने मिल कर गुरलीन और कुलजीत की हत्या कर दी और अमनप्रीत पर भी जानलेवा हमला किया। गुरलीन को तलवार से और कुलजीत को गोली मारी गई जिससे दोनों की मौके पर ही मौत हो गई। पुलिस के अनुसार गुरलीन के गले पर काटे जाने के निशान थे और उसकी अंगुलियां भी काटी गई थी। इसके बाद हमलावरों ने अमनप्रीत को अपना निशाना बनाया और उसे गलियों में दौडा कर उसे गोली मर दी जिससे वह घायल हो गया। बाद में अमनप्रीत को घायल अवस्था में अस्पताल में भरती कराया गया। अमनप्रीत के पिता घर से बाहर गये थे इस लिये वे इस हमले से बच गये। हमलावरों ने अमनप्रीत के बूढे दादा और दादी को छोड दिया।

इस घटना के बाद मेरे जहन में एक गुरलीन और अमनप्रीत की गलती क्या थी जो उन्हें उसकी इतनी बडी सजा मिली। क्या उनकी गलती ये थी कि उन्होंने एक दूसरे से प्यार किया और एक दूसरे को शादी जैसे पवित्र रिशते में बांध ले गये। अगर ये उनकी गलती है तो फिर उन्हें किस बात की सजा मिली? और अगर ये गलती थी तो ये गलती तो सदियों पहले से चली आ रही हैं जिनकी हम अक्सर मिसालें भी दिया करते हैं जैसे- हीर और रांझा, सोनी और महीवाल। प्यार के इस ढकोसले बाजी पर मुझे एक शायर का शेर याद आता है -

‘‘र्भमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा,
हमारे दिल में कोई प्यार जो पल बैठ तो हंगामा,
अभी तक डूब के सुनते थे हर किस्सा मोहब्बत का,
जो किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा।’’

ये बात उन लोगों पर सटीक बैठता है जो फिल्मों में तो प्यार को सही मानते हैं मगर उनके पीरवार का कोई व्यक्ति प्यार करता है तो ये बात उनके हलक से नीचे नहीं उतरती। उस वक्त वे दलील देते हैं कि ये सब बातें फिल्मों में ही अच्छी लगती हैं असलियत में नहीं। यहां पर हमें और उन सभी लोगों को दाबारा सोचने की जरूरत है कि क्या वाकई प्यार करना गलत है? कम से कम मैं तो इससे इत्तेफाक नहीं रखता क्योंकि राधा और कृष्ण के रूप में हम प्यार को न जाने कबसे पूजते आ रहे हैं तो हम इसे गलत कैसे मान सकते हैं।

निठारी का दूसरा इन्साफ- कोली को दोबारा फांसी

निठारी के आरती हत्या कांड का फैसला आ गया है। इस मामले में अभियुक्त सुरेंद्र कोली को कोर्ट फांसी की सजा सुनाई है। यह सजा सीबीआई की कोर्ट ने बुधवरा को कोली के खिलाफ यह सजा मुर्रर की। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ऐसे अपराध के लिये फांसी की सजा भी कम है। कोर्ट ने 4 मई को कोली को दोषी करार दिया था।

इससे पहले रिंपा हलदर केस में भी कोर्ट ने कोली को फांसी की सजा सुना चुकी है। कोर्ट के इस फैसले से यकीनन आरती के परिवार वालों के जख्मों पर थोडा मरहम तो जरूर रखा होगा मगर उनका कहना है कि असली मुजरिम तो मोनेंदर सिंह पंधेर है जिसे पुलिस और सीबीआई दोंनों ही बचाने की कोशिश कर रहे हैं। 4 मई को आरती के पिता दुर्गा प्रसाद ने कहा था कि वे पंधेर को सजा दिलवाने के लिये सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटा सकते हैं।

Saturday, May 15, 2010


खुद पर आई तो तिलमिलाया अमेरिका

जबसे न्यूर्याक के टाइम्स स्क्वेयर बम हमलों की कडी पाकिस्तान से जुडी है तबसे अमेरिका तिमिला गया है। हलांकि बम को निशक्रिय कर दिया गया था और कोई अप्रिय घटना नहीं होने पाई। पुलिस ने उस शक्स को गिरफतार करने में सफला हासिल कर ली थी जिसने इस घटना को अंजाम दिया था। फैजल शहजाद नाम का यह व्यक्ति पाकिस्तानी मूल का अमेरिकी नागरिक है। पुलिस ने रात में इसे उस वक्त गिरफतार किया था जब यह विमान से दुबई भागने की कोशिश कर रहा था। इसके बाद अमेरिकी विदेश मंत्री हेलरी क्लिंटन का बयान आया ‘‘अगर टाइम्स स्क्वेयर बम हमले के साजिश की जडें पाकिस्तान में पाई जाती हैं तो वह बेहद गंभीर नतीजे भुगतने को तैयार रहे।’’

यहां सोचने वाली बात यह है कि क्या ये वही अमेरिका है जा भारत को पाकिस्तान प्रयोजित आतंकवाद के मसले को बात-चीत से सुलझाने की नसीहत देता रहा है। भारत अमेरिका से काफी पहले से पाकिस्तीनी आतंकवाद का शिकार होता रहा हैं इसमें देश ने नजाने कितने वीर सिपाही और नागरिक खोये हैं। मगर आज जब अमेरिका को उसी के सपोले ने काटा तो क्यों वह उसके दांत तोडने की बात कर रहा है? वह भारत को दिया खुद का उपदेश अपने ऊपर लागू क्यों नहीं कर रहा है?

फतवा - क्या वाकई हक में?

देश की सबसे बडी मुस्लिम संस्था दारूल उलूम देवबंद ने एक फतवा जारी किया है। इसमें कहा गया है कि मुस्लिम महिलाओं का ऐसी किसी सरकारी या नीजी संस्थान में नौकरी करना गैर इस्लामी है, जिसमें महिला और पुरूष को एक साथ काम करना पडता है और महिलाओं को पुरूषों से बिना परदे के बात करनी पडती है। इस फतवे का दूसरे मुस्लिम सेप्रदायों ने भी समर्थन किया है।

इस फतवे से ऐसा लगता है कि मुस्लिम महिलाओं का आगे बढना मुस्लिम पुरूषों को गवारा नहीं है। वे नहीं चाहते कि उनके घर की महिलाये बाहर निकलें और अपनी योग्यता के मुताबिक काम करें। क्योंकि ऐसा तो संभव ही नहीं है कि लोग काम पर निकलें और विपरीत लिंग के व्यक्ति से उनका सामना ना हो।

यहां पर एक सवाल और खडा होता है कि क्या यह फतवा सिर्फ भारत के मुस्लिम महिलाओं के लिये है या फिर सभी मुस्लिम महिलाओं के लिये है। क्योंकि मुस्लमान सिर्फ भारत में ही नहीं रहते बल्कि पूरी दुनिया में रहते हैं। अगर ये फतवा सिर्फ भरतीय मुस्लिम महिलाओं के लिये है और बाकी और देशों में रह रहे मुस्लमानों के लिये नहीं है तो ऐसा क्यों है? ये नाइन्साफी सिर्फ भरतीय मुस्लिम महिलाओं के साथ ही क्यों? और अगर ये फतवा पूरी दुनिया के मुस्लिम महिलाओं के लिये है तो मुझे नहीं लगता कि अमेरीकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा कि पत्नी मिशैल हुसैन ओबामा, निगार खान, गौहर खान, जिया खान, शबाना आजमी, वहीदा रेहमान, सानिया मिर्जा या शेख हसीना पर भी ये फतवा लागू होगा। इसका मतलब ये हुआ कि अबसे मिशैल हुसैन ओबामा अपना काम छोड देंगी और अपने पति के साथ किसी भी देश की यात्रा पर नहीं जयेंगी, निगार खान और गौहर खान जैसी फैशन हस्तियां फैशन जगत से अपना नाता तोड लेंगी, जया खान, शबाना आजमी और वहीदा रेहमान अदाकारी छोड देंगी, सानिया मिर्जा (सानिया मलिक) अब टेनिस खेलना बंद करदेंगी और शेख हसीना राजनीती को हमेशा के लिये अलविदा बोल देंगी। मुझे नहीं लगता कि ऐसा कुछ होने वाला है। चूंकी ये सही है कि ऐसा कुछ नहीं होने वाला है तो ऐसा फतवा लाने की क्या जरूरत है जिनसे सिर्फ महिलाओं का शोषण हो। क्यों न ऐसा फतवा लाया जाये जिससे मुस्लिम महिलाओं का उत्तथान हो और उन्हें आगे बढनें में सहायता मिले।



एक साल में कसाब को फांसी संभ्व - मोइली

केन्द्रिय कानून मंत्री विरप्पा मोइली ने मंगलवार को एक टीवी चैनल में दिये अपने इन्टरव्यू में कहा कि कसाब की फांसी एक साल में संभ्व है। उन्होंने बताया कि अगर कसाब अपील भी दाखिल करता है तो भी उसके मामले को तेजी से निप्टाया जायेगा।

कानून मंत्री के बयान से यह लगता है कि वे भी कसाब के फांसी के पक्ष में है और चाहते हैं कि इससे पहले कि यह मामला भी अफजल गुरू के मामले की तरह राजनीतिक पछडे में पड जाये, दोषी को सजा मिल जानी चाहिये।

Wednesday, May 12, 2010


ऐसा क्यों है?

शीला दीक्षित को धमकी देने वाले शक्स को दिल्ली पुलिस ने दो दिनों के अन्दर गिरफतार कर लिया। पुलिस के अनुसार उसका नाम वीर सिंह है और उसने ये धमकी भरे फोन नरेला से चोरी किये फोन से किया था। पुलिस के अनुसार र्फश विहार निवासी ने सोचा था कि अगर वह चोरी के फोन से धमकीयां देगा तो वह पकडा नहीं जयेगा पर ऐसा हुआ नहीं और वह पकडा गया। इस कारनामें के बाद पुलिस खुद की पीठ जरूर थपथपा रही होगी। कहीं न कहीं इस बात की शाबाशी शीला दीक्षित भी पुलिस को इस बधाई का पात्र मान रहीं होंगी की पुलिस बडी ही तत्परता के साथ उन्हें फोन पर धमकी देने वाले शक्स को पकड लिया मगर सवाल यहां इस बात का उठता है कि अगर यही कुछ किसी व्यक्ति या यूं कहें कि किसी आम आदमी के साथ होता है तब पुलिस की ये तत्परता कहां चली जाती है। क्या आम आदमी यह समझे कि पुलिस सिर्फ राजनेताओं, उनके सगे संबधियों, रूसूख दार लोगों के लिये ही काम करती है और जब एक आम आदमी अपनी शिकायत लेकर पुलिस के पास जाता है तो पहले तो उसकी कोई सुनता नहीं। अगर उस बेचारे पर किसी पुलिस वाले को तरस आ गया तो एफआईआर तो र्दज हो जयेगी पर उसकी सुनवाई नहीं होगी। इसके लिये बडा ही साधरण सा उदाहरण फोन चोरी होने कि शिकायत दर्ज कराने की। अगर किसी का फोन चोरी हो गया है तो उसे सादे कागज पर ये लिखना पडता है कि उसका फोन चोरी नहीं हुआ है बल्कि गुम या गायब हुआ है। अगर कोई यह लिख के भी लेजाता है कि उसका फोन चोरी हुआ है तो मौके पर मौजूद वर्दी धारी चोरी को काट कर गायब लिखने को कहता है। ये जानकारी सिर्फ सादे कागज में ही रह जाती है, इसे रजिस्टर में चढाया नहीं जाता है। बस आवेदन पत्र पर मोहर लगाके दे दी जीती है। आगर आप खुशनसीब तो मौके पर मौजूद वर्दीधारी आपसे पैसे नहीं मांगेगा वरना कई जगहों पर मोहर मारने के भी पैसे देने पडते हैं। यह मोहर लगा आवेदन पत्र इस बात का सबूत है कि आपकी शिकायत पुलिस ने सुन ली है। अगर पुलिस सर्विलांस के जरिये अपराधी तक पहुंच सकती है तो यही सुविधा आम नागरिक के लिये क्यों नहीं है।

Sunday, May 9, 2010


मै भीगा परदेश में,
भीगा मां का प्यार,
दिल ने दिल से बातें की,
बिन चिट्ठी बिन तार।

आज एक खास दिन है। आज उस व्यक्ति का दिन है जिसने मुझे जन्म दिया है। दूसरों में कहा जाये तो आज मां का दिन है। मां का प्यार करने का दिन। आम दिनों में हम सभी अपने कामों में व्यस्थ रहते हैं और इस बीच अक्सर मां की अन्देखी कर बैठते हैं उन्हें वक्त न दे के। आज का दिन होता है कि हम उस शक्स को दें जिसने अपनी जिन्दगी हमें इस काबिल बनाने में बिता दी की आज हम दुनिया के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल रहे हैं। आज का दिन है उस मां को प्यार करने का जिसने हमारी एक जिद को पूरा करने के लिये अपनी कई जरूरतों को पूरा नहीं किया। हमारे चेरहे पर खुशी लाने की खातिर अपने कई आसूओं को पी गई और हमें पता भी नहीं चलने दिया और हम नादान यह ही समझते रहे कि मां खुश है। मगर आज का दिन मां के साथ बिताने का मौका कुछ ही खुश नसीबों को मिलता है, उन्हें नहीं जो मां से काफी दूर किसी दूसरे शहर में बैठे अपने लैपटाप पर इसे लिख रहें हैं और पेज पर लिख रहे शब्दों को बार बार इस उम्मींद से छू रहे हैं कि कोई तो शब्द मां को कोमल छाव का एहसास तो देगा। पर ये तो र्सिफ शब्द हैं, अपनी भावनाओं से भरी बातों से इन्हें पहले पुरा वक्य और बाद में पूरे ब्लाग की शक्ल में ढाल रहा हूं। इस विश्ेाष दिन का मेरी जिन्दगी में बडा ही खास महत्व रहा है और यकीन्न औरों की जिन्दगी में भी होगा।

मातृ दिवस का इतिहास

मातृ दिवस के इतिहास सदियों पुराना है और प्राचीन यूनानियों, जो उत्सव आयोजित करने रिया सम्मान के बार में वापस चला जाता है, देवताओं की माँ. जल्दी ईसाई रोज़ा के चौथे रविवार को माता का त्योहार मनाया काजोल सम्मान, मसीह की माँ. दिलचस्प है, एक धार्मिक आदेश पर बाद में बढ़ाकर छुट्टी करने के लिए सभी माताओं शामिल हैं, और यह ममता रविवार के रूप में नाम दिया है. अंग्रेजी अमेरिका में बसे colonists समय की कमी की वजह से ममता रविवार की परंपरा बंद. 1872 जुलिया वार्ड Howe में शांति के लिए समर्पित माताओं के लिए एक दिन का आयोजन किया. यह मातृ दिवस के इतिहास में एक मील का पत्थर है.
1907 n, अन्ना एम. (1864-1948) जार्विस, एक फिलाडेल्फिया स्कूल शिक्षक, एक करने के लिए उसकी माँ, Ann मारिया रीव्स जारविस के सम्मान में एक राष्ट्रीय मातृ दिवस सेट आंदोलन शुरू किया. वह विधायकों और प्रमुख व्यवसायियों के सैकड़ों की मदद करने के लिए एक विशेष दिन बनाने के लिए माताओं के सम्मान अनुरोध.पहला मातृ दिवस मनाया एक चर्च अन्ना की माँ का सम्मान सेवा थी. अन्ना बाहर हाथ उसकी माँ की पसंदीदा फूल, इस अवसर पर सफेद incarnations के रूप में वे मिठास, पवित्रता का प्रतिनिधित्व करते हैं, और धैर्य.अन्ना की कड़ी मेहनत के अंत में वर्ष 1914 में बंद का भुगतान किया है, जब राष्ट्रपति वूड्रो विल्सन मई में माताओं के सम्मान में राष्ट्रीय अवकाश के रूप में दूसरे रविवार की घोषणा की.

मुकेश जीते अनिल हारे

अक्सर देखा गया है कि औद्योगिक घरानों में पिता की मौत के बाद भाईयों का विवाद सामने आता है और वह घराना टूट जाता है। कुछ ऐसा ही हुआ भारत के सबसे बडे औद्योगिक घराने रिलायंस के साथ। पिता धीरू भाई अंबानी के मौत के बाद दोंनो भाईयों का विवाद लोगों के सामने आया और मीडिया में भी छाया रहा। 3 साल बाद 19 जून 2005 में रिलायंस का बटवारा दोनों की मां कोकिलाबेन ने किया। सब ने सोचा कि बटवारे के बाद आब विवाद खतम हो जायेगा पर ऐसा नहीं हुआ और फिर कुछ दिनों बाद ही एक दूसरे विवाद ने सर उठ लिया। इस बार ये मसला था गैस का। बटवारे के वक्त साइन एमओयू में तय हुआ कि रिलायंस इनडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) (मुकेश अंमबानी की कंपनी) 28 मिलियन मीट्रिक स्टैंडर्ड क्यूबिक मीटर पर गैस सप्लाई करेगा। रेट तय हुआ 2.34 डालर प्रतिमिलियन मीट्रिक ब्रिटिश थर्मल यूनिट। इसमें ता यहां तक कहा गया था कि भविष्य में मिलने वाली गैस फील्ड से मिलने वाली गैस पर अनिल के ग्रुप का 40 फिसदी हिस्सा होगा। मुकेश को ये बात नगवार गुजरी और जल्दी इसमें पेंच आ गया। उनका कहना था कि सरकार ने इस रेट को मंजूरी देने से मना कर दिया है। इस रेट पर सरकार को आय में भारी घाटा हो रहा है। गौरतलब है कि तेल और गैस की खुदाई का पट्टा इस र्शत पर मिलता है कि उत्पादन और आय में सरकार का
हिस्सा होगा। इस मसले पर सरकार ने जनवरी, 2006 में रेट 4.20 डालर प्रति यूनिट तैय किया था।

असल में 19 जून 2005 को साईन हुए एमओयू के तहत दादरी बिजली घर के लिये अनिल की कंपनी रिलायंस नैचुरल रिसोर्सेज लिमिटेड (आरएनआरएल) मुकेश की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) से सस्ती गैस चाहती थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गैस राष्ट्रीय संपत्ति है और सरकार ही इसकी कीमत तैय करेगी। सरकार ने डी-6 फील्ड की गैस की कीमत 4.20 डालर प्रति एमएमबीटीयू तय की जबकी अनिल की कंपनी 2.34 डालर प्रति एमएमबीटीयू की दर से चाहती थी। 11 मई को रिटायर हो रहे चीफ जस्टिस के0 जी0 बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अंबानी परिवार का एमओयू न तो कानूनी है और न ही तकनीकी रूप से बाध्यकारी है। सुप्रीम कोर्ट ने कानूनी लडाई लड रहे दोनों भाईयों की कंपनियों से कहा कि वे 6 हफ्ते के अंदर बैठक कर के अगले 8 हफ्ते में सरकार की नीती कक मुताबिक गैस सप्लाई अग्रीमेंट पर फिर से बात करें।

स्याही ने दी गोली को फांसी, फांसी से बचाव के कई रासते हैं।

60 घंटे का आतंकी कहर, 166 की मौत और 304 घायलों को इन्साफ आखिरकार मिल ही गया। उज्जवल निकम की दलीलों अैर सबूतों के सामने चाव पक्ष के वकील के0 पी0 पवार की एक न चली। पेषल जज एम0 एल0 ताहिलयानी ने अपने फैसले में कहा कि ...पाकिस्तान के लश्कर-ए-तैबा से मिलकर साजिश की उसके लिये मौत, खून किया उसके लिये मौत और भारत सरकार के खिलाफ जंग छेडी उसके लिये मौत ...कसाब को मरते दम तक मौत की सजा दी जायेगी,,,अगर इसे जिन्दा रखा गया तो कंधार जैसे मामले की आशंका है, जहां अपहरण किये गय विमान के बदले आतंकवादी को छुडाया गया...

...कसाब को जिंदा रखना समाज और भारत सरकार के लिए खतरा है। उसके सुधरने की उम्मीद करना फिजूल है। कसाब भारत पर हमला करने के लिये तडप रहा था, उसने अपनी मर्जी से आतंक की राह चुनी ...उसे फांसी देने के अलावा कोई और दूसरा आप्शन नहीं है।

विशेष अदालत के फैसले ने पीडितों के जख्मों पर मरहम तो जरूर लगाया होगा मगर फैसले के बावजूद भी सजा मिलने अब भी कई साल लग सकते हैं। क्योंकि फांसी के सजा के बाद भी कसाब के पास अपील के कई रासते हैं। कसाब 60 दिन के अंदर एक अर्जी हाई कोर्ट में दाखिल कर निचली अदालत के फैसले को चुनौती दे सकता है। आगर अपील स्वीकार कर ली जाती है तो केस की सुनवाई फिर से होती है। अगर हाई कोर्ट निचली अदालत के फैसले को कायम रखता है तो मुजरिम सुप्रीम कोर्ट में स्पेश्ल लीव पिटिशन (एसएलपी) दाखिल कर सकता है। अगर एसएलपी स्वीकार कर लिया जाता है तो फिर से सरकारी पक्ष के वकील के पास नाटिस भेजी जाती है और फिर मामला खंडपीठ के सामने आता है। अगर सुप्रीम कोर्ट फैसले को बरकरार रखती है तो मुजरिम सुप्रीम कोर्ट के सामने रिव्यू पिटिशन और क्यूरेटिव पिटिशन दायर कर सकता है। अगर ये दोनो याचिकायें भी खारिज होजायें मुजरिम राष्ट्रपति के सामने आर्टिकल 72 के तहत मर्सी पिटिशन दायर कर सकता है। फिलहाल 32 मर्सी पिटिशन पेंडिग हैं जिसमें से संसद भवन पर हमले का आरोपा अफजल गुरू की पिटिशन भी शामिल है।

Friday, May 7, 2010



डीटीसी का घाटा बरकरार

एक तो मंहगाई ऊपर से डीटीसी ने भाडा बढा कर लोगों के जेबों पर यह कह कर कैची चलायी की डीटीसी घाटे में चल ही है। जहां पहले किराये के चार श्रेणीयों 3, 5, 7, और जिसे बढा कर 5, 10, और 15 की तीन श्रेणीयों में बांट दिया गया। निसंदेह डीटीसी को इससे फायदा हुआ और उसकी आमदनी में इजाफा भी हुआ। मगर इसके बावजूद भी डीटीसी का घाटा बरकार है। इस घाटे को बिना किराया बढाये भी पाटा जा सकता था बशर्ते डीटीसी अपने आंतरिक कमियों को पूरा करे। असल में घाटे कि वजह ड्राइवरों और कंडक्टरों की कमी है जिसकी वजह से सैकडों की तादाद में बसें डीपो में ही खडी रह जाती हैं। इस वजह से डीटीसी को रोज 30 लाख का नुकसान हो रहा है।

दरअसल डीटीसी ने कामनवेल्थ गेम्स के मद्दे नई बसें तो खरीद ली मगर उनको चलाने के लिये ड्राइवरों और कंडक्टरों की भरती नहीं की। इसका नतीजा यह कह हुआ कि रोजाना सुबह 500 और शाम को 1500 से भी ज्यादा बसें डीपो से बाहर नहीं आ पाती। इस वक्त डीटीसी के बेडे में 4800 बसे हैं जिनमें से 2679 पुरानी स्टैंडर्ड की और 1786 नान एसी लो फ्लोर के अलावा 294 एसी लो फ्लोर भी हैं।

रोज सुबह सडकों पर उतरने से पहले उनका खाका बनाया जाता है इसके बावजूद सुबह और शाम की पालीयों में सैकडों बसें डीपो से बाहर निकल ही नहीं पाती हैं। अगर ये माने कि एक डीटीसी बस एक दिन में 1500 रू0 कमाती है तो डीटीसी को एक दिन में करीब 30 लाख 66 हजार का नुक्सान हुआ। इस तरह महीने का हिसाब 10 से 12 करोड रूपये हुआ।

टाइम स्क्वेयर का आरोपी गिरफतार

न्यू यार्क के टाइम स्क्वेयर पर कार बम हमला करने वाले पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी नागरिक को एयरपोर्ट से गिरफतार कर लिया गया। फैजल शहजाद नाम के व्यक्ति जिसकी उम्र 30 साल है को एफबीआई ने उस वक्त गिरफतार किया जब वह विमान पकड दुबई भागने की कोशिश कर रहा था। फैजल को रात में गिरफतार किया गया।

अटानी जनरल एरिक होल्डर ने आधी रात में इस गिरफतारी की घोषणा एक प्रेस कान्प्रेंस में की। बताया गया कि फैजल कनेक्टिकट में के दुमंजिले मकान में रहता था जिसकी छानबीन र्सच वारेंट के साथ मंगलवार को की गई। पुलिस का कहना है कि फैजल टाइम स्क्वेयर में बम लगी कार रखने का आरोपी है।

हवस को कलम की मार

रिंपा केस के बाद आरती के केस में भी कोहली दाषी

आखिरकार लंबे इन्जार के बाद सीबीआई के विशेष अदालत ने निठारी कांड के आरती केस में सुरेन्द्र कोली को दोषी पाया है। कोली को सात साल की आरती का अपहरण, बलातकार और हत्या का दोषी पाया है। उसकी सजा पर सुनवाई बुधवार को होगी।

कोली पर आरोप है कि उसने 25 सितंबर 2006 को आरती को अगवा कि और फिर बसके साथ बलातकार करने के बाद उसकी हत्या कर दी। आरती के पिता दुर्गा प्रसाद ने 26 सितंबर को नोएडा के सेक्टर 20 के पुलिस थाने में आरती की गुमशुदगी की रिर्पोट दर्ज करवाई थी। पुलिस ने 29 दिसंबर 2006 को निठारी कांड का खुलासा किया और कोली को हिरायत में ले लिया।

सीबीआई ने आरती की पहचान डी-5 से बरामद कपडों के आधार पर की थी। बाद में सीबीआई ने आरती के पिता दुर्गा प्रसाद और भाई सूरज के खून के नमूने लिये थे। इसके बाद इन्हें हैदारबाद डीएनए टेस्ट के लिये भेजा था। काठी के पास नाले बरामद एक खोपडी से नमूना भी मिलाया था। सीबीआई ने आरती के हत्या के मामले में सुरेंद्र कोली को आरापी बनाया था।

सीबीआई के मुताबिक पंधेर की लोकेशन उनके मोबाइल फोन के मुताबिक विदेश में थी इस लिये उसे आरोपी नहीं थहराया जा सका। सीबीआई ने अपनी चार्टशीट में कोली को आरोपी माना था। स्थानिय पुलिस के केस हाथ में लेते ही सीबीआई ने पंधेर को क्लीन चिट दे दी थी। लेकिन आरती के पिता दुर्गा प्रसाद की माने तो दोनो ही सीबीआई और स्थानिय पुलिस पंधेर को बचाने की कोशिश कर रही है। इसी कडी में सीबीआई ने दुर्गा प्रसाद का बयान भी बदल दिया। उन्होंने यह भी कहा कि सीबीआई ने मुझसे सादे कागज पर जबरन दस्तखत करवाया। दुर्गा प्रसाद के वकील ने बताया कि कोर्ट ने पंधेर को क्लीन चिट न दिये जाने अपील को यह कह कर खारिज कर दिया कि आवेदन फैसला दिये जाने के बाद आया है इसलिये इसमें कोई कानूनी दम नहीं है।

निठारी पीडित नाखुश

आरती के केस में सिर्फ सुरेंद्र को सजा मिलने से निठारी कांड के पीडित नाखुश हैं। उनका कहना है कि असली मुजरिम तो पंधेर है जिसे पुलिस और सीबाआई बचाने की कोशिश कर रही है। आरती के पिता दुर्गा प्रसाद का कहना है कि वह पंधेर को सजा दिलाने के लिये हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट भी जा सकते हैं।

Thursday, May 6, 2010


व्यक्तिगत आजादी में खलल बरदाश नहीं

जबरन नारको टेस्ट को ना

सुप्रीम कोर्ट ने अपने ताजा बयान में नारको, ब्रेम मैपिंग और पालिग्राफ टेस्ट करना अवैध बताया है। के0 जी0 बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाली खंड पीठ ने कहा कि ऐसा किसी पर जबरन तरीके से नहीं किया जा सकता। यदी ऐसा किया जाता है तो उसे व्यक्तिगत आजादी में खल माना जायेगा। आरोपी, संदिग्ध या गवाह पर इन तकनहकों का इस्तेमाल संविधान के आर्टिकल 20 (3) का उल्लंघन होगा, जिसमें किसी को खुद के खिलाफ गवाही देने के लिये मजबूर नहीं किया जा सकता। इस तरह की जांच के मजबूर करना कानूनी प्रक्रिया के खिलाफ है। माना जा रहा है कि कोर्ट के इस फैसले से जांच ऐजेन्सियों को झटका लगेगा। हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर कोइ व्यक्ति अपनी स्वेच्छा से इस टेस्ट को कराने पर सहमत हो जाता है और ऐसी तकनीकों से जांच ऐजेन्सियों को कुछ हासिल होता है तो ये जांच संम्भव है मगर इनका रिजल्ट कानूनी नहीं माना जायेगा।

मिलने से पहले टली कसाब की सजा

कल ही खबर आई थी कि कसाब को आज सजा मिल जायेगी और ये कयास भी लगाया जा रहा था कि उसे फांसी भी हो सकती है मगर रेलवे की हडताल ने इस पर पानी फेर दिया। अब कसाब को सजा गुरूवार को सुनाई जायेगी। सजा पर दलीलें सुनाने के बाद जज ने कहा कि गुरूवार तक 1522 पेज का फैसला पूरी तरह तैयार हो जायेगा। वैसे रीर्पोट लगभग तैयार है, लेकिन इसे भेजा नहीं जा सका क्योंकि मोटरमैनों की हडताल के कारण ट्रेन सेवायें बाधित रही और स्टाफ नहीं आ सका। सरकारी वकील उज्जवल निकम ने कहा कि ये केस रेयरेस्ट आफ रेयर की कैटगरी में आता है अगर इसे फांसी से कम सजा दी गई तो भारत आतंकवादी संगठनों के लिये साफट टारगेट बन जायेगा। बचाव पक्ष के वकील के0 पी0 पवार ने कहा कि कसाब कम उम्र का है इस लिये उसके साथ रियायत बरतनी चाहिए।

Wednesday, May 5, 2010


बंदूक को कलम का जवाब

‘‘मैने आपको दोषी पाया है क्योंकि आपने देष के खिलाफ जंग की और 166 लोगों की जान ली अपने दोस्तों से मिलकर‘‘- स्पेषल जज एम0 एल0 ताहिलयानी

कसाब के मामले के लिये गठित विषेष अदालत ने कसाब को दोषी करार दिया है। आतंकवाद के मामले में अभी तक का ये सबसे तेज फैसला है। कसाब की सजा पर सुनवाई मंगलवार को होगी। कसाब को फासी भी हा सकती है। 26/11 को अजमल कसाब और उसके नौ साथी ने मुंबई में 60 घंटे तक आतंक का कहर बर पाया था जिसमें 166 लोगों की मौत हो गई थी और 304 लोग घायल हुऐ थे। इनके टारगेट थे होटल ट्राइडेंट- ओबेराय, होटल ताज महल, नरीमन हाउस, छत्रपति शिवाजी ट्रमिनल, लिओपोल्ड कैफे, कामा हास्पिटल आर मेट्रो सिनेमा जंकशन थे। कसाब और उसके साथियों ने दो टैक्सियों को बम से उडाया था। कसाब को गिरगांव चैपाटी से पकडा गया था।

इस फटाफट मुकदमें में कुल 271 दिन लगे और 658 गवाह पेश हुए। कसाब पर 86 आरोप लगाये गये जिसमें से 81 साबित हुए। इस केस में 3192 पेज में सबूत र्दज किये गये। कसाब के खिलाफ सभी 30 गवाहों को मंजूरी की गई। पेषल जज एम0 एल0 ताहिलयानी ने 1522 में अपना फैसला सुनाया। जज ने कहा कि यह मामला हत्या का मामला नहीे है, बल्कि इसके पीछे देश के खिलाफ बडी साजिश है। फैसले के मुताबिक हमले के सबूत साफ तौर पाकिस्तान की ओर इशरा करते हैं। सबूतों ये साफ जाहिर होता है कि पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और जमात-उद-दवा के कमांडर हाफिज सईद और जकी-उर-रहमान लखवी आतंकवादी हमलों में शामिल थे। जिस वक्त आतंकवादी हाटल ताज में छिप कर मुंबई पर गोलियां बरसा रहे थे उस वक्त उनके आका हाफिज सईद और जकी-उर-रहमान लखवी उन्हें फोन पर उन्हें उनके अगले कदम के बारे में बता रहे थे और कह रहे थे कि मरते दम तक लडते रहना और जिन्दा मत पकडे जाना।

आज बहुत सारे लोग जो इस खौफनाक हमले के शिकार बने या नहीं बने वह ये ही दुआ कर रहे होंगे कि कसाब को फांसी की ही सजा मिलनी चाहीये ताकि उनके साथ इन्साफ हो सके जिन्होंने अपनी जान गवायी और जिन्होंने अपनों को खोया।

Tuesday, May 4, 2010


उफ ये मच्छर

आजकल माधरी गुप्ता मच्छरों से काफी परेषान हैं। दरअसल माधुरी को तिहार जेल के जेल नं0 6 में रखा गया है। आज कल उनकी दिन और रात 9ग्12 के सैल में बीत रहे हैं। उनके साथ दो और महिला कैदियों को भी रखा गया है। माधुरी के की शुरूआत सैल में ही लगे टीवी पर न्यूज देख कर होती है। नाष्ते में उन्हें चाय, ब्रड और आलू की सबजी मिलती है। माधुरी डायबटीज की भी मरीज हैं।

माधरी पर निगरानी हेतु कोई सीसीटीवी कैमरी नहीं लगाया गया है बल्कि इसके लिये दो अलग से स्टाफ है जो हर वक्त अपनी नजर उन पर बनाय रखते हैं। माधुरी के साथ दो और महिला कैदियों को रखने कि वजह ये डर भी है कि कहीं वे डिप्रषन में आकर खुदखुषी न करने की कोषिष करें। क्योंकि अमूमन ये देखा गया है कि पहली बार जेल में आना कैदियों के लिये डिप्रषन की वजह बन जाती है और ऐसे में वे खुद को खत्म करने की कोषिष करते हैं।

दुनिया के चैराहे को उडाना किया नाकाम

अभी कुछ ही दिनो पहले खबर आई थी कि अमेरिका ने भारत को आतंकी हमले से चेताया था। उसने बताया था कि कुछ आतंकवादी संगठन भारत में आतंकी वारदात करने की फिराक में हैं। भारत ने भी इसे हल्के में नहीं लिया और मुख्य स्थलों जैसे मुख्य ईमारतों, बाजारों, भीड भाड वाली जगहों पर खासा चैकसी बढा दी गई। मगर जिस देष ने हमें ये सूचना दी उसी पर आतंकियों ने हमला करने की कोषिष कर डाली। मगर न्यूयाॅर्क पुलिस की मुस्तैदी और लोगों की सूझ बूझा से इसे नाकाम कर दिया गया। दरअसल आज अखबार में खबर पढी कि न्यूयाॅक के टाइम्स स्केवयर जिसे दुनिया का चैराहा भी कहा जाता है पर एक कार बम को निषक्रिय कर दिया गया। राष्टपति बराक ओबामा ने पुलिस के काम की सराहना करते हुए कहा कि उनका काम शानदार था।

Monday, May 3, 2010


मधुरी गुप्ता...केस में नया twist


आज सुबह जब मैने अखबार खोला तो बडा ही आष्र्चय हुआ और साथ ही साथ यह भी एहसास भी हुआ कि अभी माधुरी गुप्ता प्रकरण में काफी दम है। यह मामला इतनी जलदी थमने वाला नहीं है। ये प्रकरण अभी बहुत से राज खोलने वाला है।कल ही मैंने लिखा था कि मुझे बडा ही अचंभा हुआ जब मैंने माधुरी को सातवें पेज पर पाया। मैंने सोचा था कि चलो ये खबर धीरे धीरे पुरानी हो रही है पर ये इतनी भी पुरानी नहीं हुई थी कि उसे पहले पन्ने से सातवें पन्ने पर पटक दिया जायैंआज खबर आई है पुलिस की माधुरी को और दो दिन रीमांड पर रखने की अरजी को खारिज कर दिया गया है। दरअसल 23 अप्रैल को माधुरी को उनके दिल्ली आवास से गिरफतार किया गया था। उस उनके पास से दो सेल फोन और सात अहम दस्तावेज बरामद किये गये थे। उस वक्त उन्हें आठ दिनों कि न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था। उन्हें तिहार जेल की जेल नं0 6 के सेल में रखा गया था। आठ दिनों कि न्यायिक हिरासत के बाद उन्हें तीस हजारी स्थित चीफ मेट्रोपालिटेन मैजिस्ट्रेट कावेरी बावेजा के सामने पेष किया गया। सुनवाई जज के चेम्बर में हुई। सुनवाई के दौरान माधुरी ने कहा कि वे बकसूर हैं और उन्हें इस मामले में फसाया जा रहा है। पुलिस ने ये कह कर दो दिन कि न्यायिक हिरासत की मांग थी कि उसके पास माधुरी के खिलाफ कुछ और साक्ष्य हैं जो कि पाकिस्तान से लाये गये हैं। माधूरी के वकील ने कहा कि वे बेगुना है और उन्हें फसाया जा रहा है। चुंकि सुनवाई के दौरान पुलिस अपना पक्ष सही तरीके नहीं रख पाई इस लिये दा दिन कि न्यायिक हिरासत की मांग को कावेरी बावेजा की पीठ ने सिरे से खारिज कर दिया।

Sunday, May 2, 2010

माधुरी गुप्ता................ सिकुडती खबर

अखबारों में खबरों का बहाव देख कर कभी कभी बडा आष्र्चय होता है। एक वक्त जो खबर अखबारों में सूखियों में होती है वही खबर वक्त बीतने के बाद उन्हीं अखबारों में अपनी जगह तलाषती नजर आती है। इस पर मीडिया विषेषज्ञों का कहना है कि खबरों का प्रवाह इतना जादा होता है कि छोटी खबरें तो इसमें फस कर बह जाती हैं मगर बडी खबरें कुछ दिनों तक टिकी रहती हैं। मगर अंत में उनका भी हाल बाकी खबरों कि तरह ही होता है। कुछ ऐसा ही देखने को मिला माधुरी गुप्ता प्रकरण में भी। जब ये मामला प्रकाष में आया तब मीडिया चैनलों और अखबारों खूब सुर्खिया बटोरी मगर जैसे जैसे दिन बीतते गये ये खबर पहले पन्ने से खिसक कर सातवे पन्ने पर पाई गई। जहा पहले इस प्रकरण ने अखबारों के कई कालमों की जगह पाई थी वहीं आज इस खबर को सातवे पन्ने पर एक कालम में समेट दिया गया। आज खबर आई है कि माधुरी ने पाकिस्तानी खुफिया संगठन आई एस आई के आकाओं के नामों का खुलासा किया है, जिनसे वह सम्र्पक में रहा करती थी।

मधुरी गुप्ता.............. खबरो का बाजार गरम

माधुरी गुप्ता को लेकर खबरों का बाजार गरम है। आये दिन उनसे संम्बंधित कोई न कोई अखबारों में छप रही है। इसी मामले पर आज सुबह एक और खबर पढने को मिली। खबर आई है कि माधुरी ने इस्लाम र्धम अपना रखा था। खबर में बताया गया कि उन्होंने इस्लाम पिछले 6 सालों से अपना रखा है। पाकिस्तान में उन्हें एक पाकिस्तानी पत्रकार ने हरे लिबास और हरी चूडिया पहने देखा था जो र्सिफ षिया औरते ही पहनती हैं। मुझे लगता है कि इस खबर से मीडिया ये बताने कि कोषिष कर रहा है कि माधुरी ने पाकिस्तान से इस लिये हाथ मिलाया क्योंकि उन्होंने इस्लाम कबूल कर रखा था। अगर ऐसा है तो ये बात कुछ र्तक संगत नहीं लगती क्योंकि कोई व्यक्ति इस्लाम कबूलने या मुस्लमान होने से ही देष द्रोही नहीं हो जाता। इसके लिये कुछ कारक होते हैं जिन्हें किसी धर्म, जाती या समुदाय से जोड कर नहीं देखा जाना चाहीये।

Saturday, May 1, 2010


इन्हें क्या कहें?

बचपन में जब हम स्कूलों मे गलतिया करते थे तो हमें हमारे अध्यापक सजा देथे। ये सजा कभी पिटई के तौर पर तो कभी मुर्गा बन कर या हाथ ऊपर करके। स्कूलों में सजा देना टीचरों कि आदत थी हमारी आदत सजा मिलने वाले काम करने की थी। सजा का मुख्य उद्देष्य होता था हमें सुधारना पर आज जब उन्हीं अध्यापकों से गलती हो जाये तो क्या करें? क्या इन्हें सजा मिलनी चाहिए? अटामिक एनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड (एईआरबी) का तो ऐसा ही सोचना है। एईआरबी के अनुसार ये सजा के हकदार हैं और इन्हें सजा मिलेगी। दरअसल जिस कोबाल्ट 60 ने इतना कोहराम मचाया, सारे अखबारों और चैनलों की लीड स्टोरी बना रहा वो कोबाल्ट 60 डीयू (दिल्ली विष्वविद्दालय) के केमिस्ट्ररी लैब से मिला था। इसे केमिस्ट्ररी विभाग के पूर्व प्रो वी के र्षमा ने 1968 में इस पदार्थ को मंगवाया लेकिन उनके रिटायारमेंट के बाद किसी ने भी इस इस्तेमाल नहीं किया। वक्त बीतता गया और इसे उठा कर कमरे में बन्द कर दिया गया। डीयू प्रषान को जब इसकी याद आई तो उन्हें लगा कि अब ये किसी काम का नहीं रहा। उन्हांे ने इसके लिये एक कमेटी बनाई जिसने ये निर्णय लिया इसे कबाड में बेच देना चाहिये। कमेटी के इस फैसले पर डीयू प्रषासन ने अपनी मुहर लगा दी। उसके बाद ये अलग माध्यमांे से होता हुआ मायापूरी के स्कै्रप र्माकेट में पहुचा। मामले का खुलासा तब हुआ जब कोबाल्ट ने अपना असर दिखाना षुरू किया। रेडिएष का असर लोगों कि त्वचा पर दिखने लगा। मामले कि जब जांच हुई तो धीरे धीरे इसकी परते खुलती गई। मामले को तूल पकडता देख डीयू प्रषासन ने इसे अपनी नैतिक जिम्मेदारी मानी और पीडितों के लिये धन एकत्रित किये।

वो कहते है ना कि बात निकले गी तो दूर तक जायेगी, इस केस में भी कुछ ऐसा ही हुआ। कोबालट की बात थमी भी डीयू कि एक और नादानी सामने आ गई। करीब बीस साल पहले युनिवर्सिटी ने यूरेनियम 235 (15 से 20 किलो) जमीन में गड्ढा खोद कर दफना दिया था। अब मैं सोचता हू कि इसे क्या कहूं? एक ऐसा संस्थान जिसमें लोग अपने बच्चों को पढाना चाहते हैं वहा के अध्यापक ऐसा गैर जिम्मेदारा रवैया रखते हैं। इसके लिये डीयू प्राफेसरों का ये तर्क है कि उन्हें इसके लिये कोई विषेष टेªनिंग नहीं मिली। मगर प्राफेसरों के इस बयान से मुद्दे से पल्ला झाडने का इरादा लगता है बनस्पद जिम्मेदारी लेने का। जबकि यहा ध्यान देने वाली बात ये है कि एईआरबी ने इसके लिये दिषा निर्देष बना रखे हैं। अगर प्रोफसरों कि बात मान भी ली जाये कि उन्हें टेªनिंग नहीं मिली तो इसका मतलब ये समझा जाये कि वो बुद्दिजीवी वर्ग जिनके पास हमारे माता पिता हमें कुछ सीखने के लिये भेजते हैं वे ऐसी परिस्थितियों में अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं करते हैं? और अगर ऐसा है तो इस्से होने वाली हानी का जिम्मेदार कौन होगा, सोचने वाली बात है।