Sunday, June 13, 2010


छोटू भी जुटा तैयारियों में

अभी पिछले हफ्ते की ही बात है जब मैं अपने कुछ दोस्तों के साथ एक छोटे से ढाबे पर बैठे थे। हम वहां चाय पीने के लिये गये थे। हमने चार चाय आडर करी। 15-20 मिनट बीत जाने के बाद भी जब चाय सामने नहीं आयी तो मेरे एक मित्र ने आवाज लगाई, ‘‘छोटू चाय का क्या हुआ’’? आवाज सुनते ही चाय ट्रे में रख कर वो हमारे पास ले आया और बोला, ‘‘सर सारी फार दी डीले सर’’। उसके जाने के बाद बाकियों ने तो उसकी बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया लेकिन मेरे दिमाग में उसकी बातें कौंधने लगी। मैंने उसे फैरन बुलाया और अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिये पूछ पडा कि ‘‘तूने ये अंग्रजी बोलना कहां से सीखी’’? मुझे और हैरानी हुई जब उसने इसकी वजह बताई। उसनक कहा ‘‘सर मैं भी कामनवेल्थ गेम्स की तैयारी कर रहा हूं।’’ मैंने पूछा ‘‘मतलब’’? उसने फिर जवाब दिया ‘‘सर अक्टूबर में गेम्स हैं ना।’’ मैंने कहा ‘‘तो’’? ‘‘कामनवेल्थस गेम्स के दौरान जब खिलाडी मेरे दुकान पर चाय पीने आयेंगे तो उनसे अंग्रजी में ही बात करनी होगी ना,’’ उसने कहा। मैंने अपने मन में कहा कि देखो कहां एक तरफ दिल्ली सरकार गेम्स के अपनी एंडी चोटी एक किये हुये है वहीं ये भी अपनी ओर से प्रयास कर रहा है इस उम्मीद में कि जब खिलाडी उसके दुकान में आयेंगे तो वह उनसे अंग्रजी में बात करेगा। मगर उस नादान को ये नहीं पता कि उसका यह सपना कभी पूरा नहीं होगी क्योंकि दिल्ली सरकार ने बाल श्रम के खिलाफ अपनी आसतीन चढा रखी है। सरकार का यह अंदेशा है कि गेम्स के दौरान बाल मजदूरों की मांग और बढेगी और उसी अनुसार बाल शोषण भी।

यह भी बताते चलें कि सरकार ने नियम बनाया था कि हर कंस्ट्रक्शन साइटों पर कंस्ट्रक्शन कम्पनीयां मजदूरों के बच्चों के लिये के्रच का इ्रतजाम करेगी लेकिन साइटों पर हमेशा इस नियम की अंदेखी की जाती रही और इसके खिलाफ सरकार ने भी कोइ ठोस कदम नहीं उठाये। नतीजतन मजदूरों के बच्चे या तो सडकों पर भीख मांगने लगते हैं या तो वह भी अपने माता पिता की तरह मजदूरी करने लगे। गरीब माता पिता भी उन्हें ऐसा करने से नहीं रोकते क्योंकि उनका बच्चे भी घर में चार पैसे कमा के लाते हैं।

लेकिन अब जब कामनवेल्थ खेल दिल्ली के दरवाजे पर दस्तक देने के तैयारी में है, दिल्ली सरकार को बाल श्रम रोकने की सुध आयी है। यह भी देखने वाली बात होगी कि जहां सरकार दिल्ली को अमीरों का शहर बनना चाहती है वहीं खेलों के दौरान दिल्ली का गरीब चेहरे को कहां तक छिपाने में कामियाबी मिलती है।

Saturday, June 12, 2010


भोपाल गैस कांड पर ब्लाग जगत एक

भोपाल गैस कांड पर जब फैसला आया तो पीडितों समेत सभी छुब्ध हुये। इसका असर अखबारों, चैनलों पर तो खूब देखने को मिला जहां पर अपने अपने तरीके से विरोध जताया गया। इस कांड की आंच ब्लाग जगत भी पहुची और वह भी इससे अछूता न रह सका। अपने अपने ब्लागों में लोगों ने अपने अपने शैली में सरकार और न्याय व्यवस्था को खूब बखिया उधेडी। आरोपी एंडरसन और यूनियन कार्बाइड को कटघरे में लाने का एक स्वर में मांग की जिससे उसे सजा दिलाई जा सके। इसके साथ ही तब और अब की सत्तारूढ पार्टी कांग्रेस के प्रधान मंत्री राजीव गांधी की भूमिका पर भी सवालिया निशान लगाया है। देखने वाली बात यह होगी कि मीडिया, लोगों और ब्लागर्स की आवाज सरकार के कानों तक पहुंचती है कि नहीं।

मैं दैनिक भास्कर पर

Friday, June 11, 2010


भोपाल गैस कांड और ग्लोबल मीडिया की लताड

भोपाल गैस कांड पर जबसे फैसला आया है तब से सरकार पर भारत समेत पूरे विश्व के मीडिया की भौएं तिरछी हो गई हैं। भरतीय मीडिया ने तो अपना विरोध जताया ही है और सरकार और कानून व्यवस्था को जम कर खरीखोटी सुनाई है मगर अब इस मामले पर विश्व मीडिया का विरोध भी सामने आया है। ग्लोबल मीडिया ने इस मसले पर सरकार के रवैये को संवेदनहीन करार देते हुए कडी निंदा की है। उन्होंने आरोप लगाया है कि सरकार जानबूझ कर कारपरेट जिम्मेदारी जैसे मसले पर भ्रामक रूख अपनाये हुए है जिससे कि विदेशी निवेशकों को निवेश हेतु ललचाया जा सके।

घटना के लगभग 26 साल बाद आये फैसले को नाकाफी बताते हुए इसे एक भद्दा मजाक बताया है। अंतराष्टीªय मीडिया का कहना है कि इसकी पूरी जिम्मेदारी सरकार और न्याय व्यवस्था कि है। कइ्र्र अख्बारों ने इस पूरे मामले को विवादित परमाणु दायित्व बिल के साथ जोड कर भी देखा है। आरोप यह भी लगाये गये है कि सरकार ने इस मामले पर लचर रूख अपना कारपोरेट दायित्व पर नरमी इस लिये बारती है ताकि विदेशी कंपनियों को भारत में निवेश करने के लिये ललचाया जा सके।

देखा जाये तो अंतराष्ट्रीय मीडिया का कारपोरेट दायित्व पर नरमी का आरोप सही लगता है क्योंकि भारत साढे नौ फीसदी की सालाना विकास दर पर चल कर एक महाशक्ति बनने का सपना संजोये बैठा है वह पूरा नहीं हो सकता है। विदेशों से जितना अधिक निवेश करेंगे भारत को उतना अधिक विदेशी मुद्रा मिलेगी, लोगो को रोजगार मिलेगा और धीरे धीरे भारत विकास के पथ पर आगे बढता रहेगा। मगर विकास के लिये इतनी बडी कीमत चुकाना क्या सही है? सरकार को उन बच्चों पर जरा सी दया नहीं आयी जिन्होंने अभी दुनिया भी नहीं देखी और उससे पहले ही लौ बुझ गई? सरकार लोगों की हितैशी बनती है तो फैसला एंडरसन के पक्ष में कैसे चला गया। इसका सीधा सीधा अर्थ तो यही निकलता है सरकार का सबकुछ किया एक ढोंग के अलावा कुछ नहीं है।

भोपाल गैस कांड

26 साल के लंबे इन्तेजार के बाद जब भोपाल गैस कांड का फैसला आया तो पीडितों समेत सभी लोगों के होश ही फक्ता हो गये। जिस हादसे को इतिहास के सबसे भयावह हादसों की संज्ञा दी गई हो और जिसमें 15000 से अधिक जाने लील ली गई हों उसके दोषियों को महज दो साल की सजा सुनाई गई है। हद तो तब पार हो गई जब दोषियों को जमानत पर रीहा भी कर दिया गया। अगर इन सब के बाद सरकार कुछ क्षण के लिये ही सही कहीं मुहं छिपा कर बैठ जाये तो इसे ईमानदार प्रतिक्रिया कहने में गुरेज नहीं होनी चाहिये।

इस मामले पर अगर न्यायविदों की मानें तो इस तरह की घटनाओं के लिये कानून का अभाव है, जिसके तहत अभियुक्तों को सजा मिल सके। लेकिन जो भी हो इस मामले में जांच एजेन्सी सीबीआई और सरकार के नकारात्मक रूख पर सवालिया निशान जरूर लगाया है कि क्या सरकार की नजरों में लोगों की जान की कोई कामत नहीं है। अगर है तो मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन को मुल्क छोडने कैसे दिया या यूं कहें तो भगाया कैसे? सवाल इस पर भी खडा होता है कि न्यायलय में केस फाइल करने से पहले मामला धारा 304 (ए) के अंतर्गत दर्ज किया था लेकिन जब मामला न्यायलय में पहुंचा तो उसे धारा 304 (2) के अंतर्गत बना पेश किया गया जिसमें अधिक्तम सजा 2 साल की है।

लेकिन सबसे मजेदार बात तो यह रही कि 15 हजार से अधिक लोगों की मौत पर जो लोग पिछले 25 वर्षों से चुप थे, उन्हें फैसला आने के बाद एक दूसरे पर छींटा कशी करते और सफाई देते देखना दुर्भाग्यपूर्ण है। मामले से जुडे सीबीआई के एक भूतपूर्व अफसर का कहना है कि विदेश मंत्रालय के स्पष्ट निर्देश के वजह से उन्होंने मुख्य आरोपी एंडरसन के प्रत्यर्पण का मामला आगे नहीं बढाया। इसके जवाब में तब और अब की सत्तारूढ पार्टी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और मौजूदा कानून मंत्री विरप्पा मोइली ने कहा कि बौतर जांचकर्ता अगर वे चाहते तो किसी भी दबाव की परवाह किये बगैर अपना काम आगे बढा सकते थे। जैसा मुंबइ्र्र हादसे को ब्लैक फ्राईडे के नाम से जाना जाता है वैसे ही 7 जून, 2010 को भी अपनी मानवता के खिलाफ के रूप में याद किया जाये तो यह कोई अतिशियोक्ति नहीं होगी।

इस मामले को तत्कालीन चीफ जस्टिस आफ इंडिया ए0 एम0 अहमदी ने कार हादसे की तरह देख व्यंग सरीखे रखने की कोशिश की है। उनके अनुसार यदि किसी कार हादसे में किसी की मौत हो जाती है (जब कार ड्राइवर कार चला रहा हो) तो गलती उनकी नहीं कही जा सकती है। इस तरह की बयान बाजी और मामले पर फैसले के बाद मुख्य अभियुक्त एंडरसन को लेकर सरकार का लचर रवैये पर पीडितों के हालात पर एक शेर याद आता है कि
‘मेरा मुंसिफ ही मेरा कातिल है
मेरे हक में फैसला क्या देगा।’

Sunday, June 6, 2010


अरूंधती राय का नक्सलियों का समर्थन

मशहूर लेखिका अरूंधती राय को कौन नहीं जानता है, मगर उनके विचारों पर मुझे हैरानी होती है। मैं अभी तक उन्हें काफी गंभीर महिला समझता था मगर उन्होंने जब से बतौर नक्सलियों का पैरोकार बन जब से उनका समर्थन किया है, मुझे उनके बारे में अपनी राय पर पुनः विचार करने पर मजबूर कर दिया है। उन्होंने अपने बयान में कहा कि नक्सलियों का समर्थन करती है क्योंकि उनके विचार से वर्तमान परिपेक्ष में गांधीवादी तरीके से समस्याओं का हल नहीं निकाला जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर इसके लिये जेल भी भेज दिया जाये तो भी वे नक्सलियों का समर्थन करना नहीं छोडेंगी।

अभी तक नक्सलियों के समर्थन के तार नेताओं से जोडे जाते रहे हैं लेकिन यह पहला मौका है जब ऐसे लोग नक्सलियों का खुलेआम समर्थन कर रहे हैं। इन लोगों को नक्सलियों का समर्थन करने से पहले ये जरूर सोचना चाहिये कि वे किनका समर्थन कर रहे हैं। ये वही हैं जो खुद को आम लोगों का समर्थक कहते हैं मगर ज्ञनेश्रव्री रेल हादसे कर उन्हीं बेकसूरों को मौत के घाट उतारते हैं। इसी रेल हादसे में करीब 150 से ज्यादा लोग मारे गये थे और करीब 200 से अधिक लोग मारे गये थे। सबसे मजेदार बात ये कि बाद में नक्सलियों का बयान भी आया कि उनसे भूल हो गयी थी। वे माल गाडी उडाना चाहते थे लेकिन भूलवश ज्ञनेश्रव्री एक्प्रेस उड गयी। वे अपनी गलती के लिये क्षमा प्राथी हैं। ये तो वैसी बात हो गयी जब छोटे बच्चे कोई गलती करने के बाद में माफी मांग लेते हैं। लेकिन कोई नक्सलियों से पूछे कि उन परिवारों की भरपाई कैसे होगी जिनके परिवार के लोग बेवजह ही अपनी जान गवा बैठे। ये रक्त पात और हिंसा तुम छोड क्यों नहीं देते?

मैं ये नहीं कहता कि नक्सलियों ने अपने मर्जी से हाथों में हथियार उठे हैं। यकीन्न वे प्रशासन और सरकार से खिन्न हैं और उनके अनुसार हथियार उठाने के अलावा कोई और रासता नहीं है। मगर हर समस्या का हल बंदूक से नहीं निकलता। ऐसा कर के वे खुद को सरकार के खिलाफ खडा कर रहे हैं और अपने दमन की वजह खुद बन रहे हैं। मैं इस बात को ऐसे समझाना चाहुंगा कि अगर हर मसले का हल गोली होती तो कश्मीर मसला कबका हल हो चुका होता और नतीजा किसके पक्ष में होता ये सबको पता है।

Saturday, June 5, 2010


ओपनिंग और क्लोजिंग देखना होगा महंगा

अगर आप कामनवेल्थ गेम्स के ओपनिंग और क्लोजिंग सेरेमनी देखने के इच्छुक हैं तो आपको अपनी जेब थोरी ज्यादा हल्कि करनी होगी। ये इस वजह से है कि ओपनिंग सेरेमनी के टिकट की न्यूनतम दर 1000 रूपये और अधिकतम टिकट की दर 50000 से लेकर 1,00,000 रूपये तक हो सकती है। वहीं समापन समारोह में टिकटों की दर 250 से 500 तक हो सकती है जबकि खेल प्रतियोगिताओं के लिये न्यूनतम 50 रूपये और अधिकतम 1000 रूपये रखी गयी है।

खेलों के लिये टिकटों की औपचारिक बिक्री तेजेन्द्र खन्ना आज से शुरू करेंगे और संभवतह् पहला टिकट मेयर को दिया जायेगा। कुल 17 लाख टिकटों की बिक्री का लक्ष्य रख गया है। इसकी शुरूआत आनलाइन टिकटिंग से होगी और बाद में ये टिकटें आईआरसीटीसी की वेबसाइट पर और सेंट्रल बैंक आफ इंडिया की कुछ शाखाओं पर बेची जायेंगी। यही नहीं, जिस दिन का टिकट होगा, उस दिन टिकट धारक डीटीसी और मेट्रो में मुफ्त में यात्रा कर सकेंगे।
पहले बीएमडब्लू और अब मर्सिडीज

पहले दिल्ली में बीएमडब्ल ने लोगों की जान ली और इस बार ये घटना को अंजाम एक स्पोट्र्स मर्सिडीज ने दिया। ये हादसा साउथ दिल्ली में सामने आया जब एक टैक्सी को एक स्पोट्र्स मर्सिडीज ने टक्कर मार दी। टक्कर इतनी जोरदार थी कि हादसे में दोनों कारों के परखच्चे उड गये। इस घटना में एक 28 वर्षी महिला की मौत हो गयी। मर्सिडीज बीएसपी से कांग्रेस में शामिल हुए नेता कंवर सिंह तनवर की है और कार उनका बेटा दिनेश चला रहा था। हादसे के वक्त दिनेश के साथ एक महिला भी मौजूद थी। हादसे के बाद दोंनों मौकाये वारदात से फरार हो गये थे मगर पुलिस ने दिनेश को गिरफतार कर लिया है।

यह वाक्या बुधवार देर रात 2 बजे साउथ दिल्ली के आर के पुरम इलाके में उस वक्त हुआ जब टैक्सी अफ्रीका एवेन्यू पर दूसरी रेड लाइट से दायें मंडी और तभी तेज रफतार आ रही मर्सिडीज ने टक्कर मार दी। पुलिस के मुताबिक हादसे के वक्त मर्सिडीज तकरीबन 150 किमी0 प्रति घंटा रही होगी। कार सवारों की जान कार में लगे एयर बैलून ने बचा ली। हादसे के करीब डेढ घंटे तक टैक्सी ड्राइवर नरेश और युवती घायल अवस्था में पडे रहे थे। रात करीब 3ः35 बजे वहां से गुजर रही पीसीआर वैन ने दोनों को घायल अवस्था में एम्स ट्रामा सेंटर पहुंचाया जहां बाद में युवती को मृत घोष्ति कर दिया गया।

ये देखने वाली बात होगी कि इस मामले में दोषी को सजा कितनी जल्द मिलती है क्योंकि ये मामला एक मंत्री के बेटे का है और मंत्री भी ऐसा वैसा नहीं है बल्कि पिछले विधान सभा चुनाव में भाग लेने वाला सबसे अमीर उम्मीदवार कंवर सिंह तनवर का है। कहीं ऐसा न हो कि मंत्री जी अपनी कुर्सी के प्रभाव से मामले को ठंडे बस्ते में डलवादें।

Friday, June 4, 2010


ज्ञानेव्श्ररी एक्सप्रेस पर नक्सली हमला

आज नक्सलियों ने मानवता की हदों का तब पार कर दिया जब एक ट्रेन हादसे में 150 से अधिक लोग मारे गये और 200 से ज्यादा घायल हो गये। ये नक्सली कहर ज्ञानेश्रवरी एकप्रेस पर अब तक का सबसे बडा नक्सली हमला है। ये ट्रेन गुरूवार रात 11 बजे मुंबई के लिये रवाना हुई थी मगर जैसे ही यह माओवादी प्रभावित खेमाशोली रेलचे स्टेशन को पारकर झाडग्राम थाना अंतर्गत राजबंध क्षेत्र में पहंुची, वैसे ही यह वारदात हुआ। इस हादसे में ट्रेन की 13 बोगियां पटरीयों से उतर गई और डाउन ट्रैक पर आरही माल गाडी से भिडंत हो गई। इस भिडंत का खासा असर कोच संख्या एस 3, एस 4, एस 5, एस 6 और एस 7 पर पडा जोकी बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई। इनमें से भी कोच संख्या एस 3, एस 4, और एस 5 बहुत ज्यादा प्रभावित हुये जिनमें से किसी के भी बचने की उम्मीद बहुत कम थी। घटना के बाद दक्षिण-पूर्व रेलवे ने बचाव का काम शुरू कर दिया था और जिसमें बाद में चायू सेना ने भी अपना योगदान दिया।

ट्रेन की पटरी को देख कर यह कयास लगाया जा रहा है कि पटरी को बम धमाके से उडाया गया है और साथ ही यह भी कयास सामने आया कि ट्रैक को उडाया नहीं गया है बल्कि फिश प्लेट गायब की गई है। ट्रेन के ड्रइवर का भी यह कहना था कि उसने भी धमाके की आवाज सुनी थी। मगर जो दृश्य टीवी पर दिखाये जा रहे थे उन्हें देख कहीं से ये नहीं लग रहा था कि ट्रैक कों धमाके से उडाया गया है बल्कि यह लग रहा था कि पटरी को काटा गया है और फिश प्लेट को गायब की गयी है। इस मसले की जांच के लिये रेल मंत्री ममता बनर्जी ने पूरे प्रकरण की जांच सीबीआई से करवाने की बात भी कही।

मगर यह बेहद अफसोस की बात है कि जहां घायलों और मृतकों से सहानभूति और नक्सलियों पर नकेल कसने का प्रयास किया जाना चाहिये था वहीं इस घटना को मुद्दा बना कर सियासत खेली जा रही है और साथ ही इस वारदात के बाद बेतुके उपायों पर काम किया जा रहा है। बेतुके उपायों से मेरा तात्र्पय सरकार के उस फैसले से है जिसमें कहा गया है कि सरकार रात को नक्सली इलाकों में ट्रेनें नहीं चलाने पर विचार कर रही है। इससे सीधा सीधा अभिप्राय यह निकलता है कि अगर कोई हादसा सूरज की किरणों के नीचे होगा तो सरकार ट्रेनें दिन में भीनहीं चलायेंगी। अर्थत ट्रेनों का रात में चलना तो पहले से ही बंद है और अगर दिन में कोई हादसा होता है तो ट्रेनें दिन में भी नहीं चलेंगी जिससे कि पूरी रेल यातायात ठप हो जायेगा। मेरे विचार से सरकारों और मंत्रियों को बचपना छोड अपने विवेक से काम लेना चाहिये।

वहीं इस मामले को सीयासी जामा पहनाते हुये रेल मंत्री ममता बनर्जी ने वाम दलों पर राजनीतिक षड्यंत्र रचने का आरोप लगाया है। लेकिन जब यह पहले ही हो चुका है कि ये हमला नक्सलियों द्वारा किया गया है तो फिर मामता बनर्जी ने इस हादसे को सियासी रंग क्यों देने की कोशिश कर रही हैं जब कि नक्सली हमले की धमकी पहले ही दे चुके थे। लगता है कि वे कुर्सी की शक्ति ने उन्हें इस कदर अंधा कर दिया है कि चे अब उसे किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती हैं और शायद यही सोच कि इससे पहले वाम दल और विपक्ष उन्हें घेरे उन्होंने पहले हमला बोल दिया।