Friday, August 20, 2010



क्योंकि कुर्सी छूटती नहीं मुझसे



क्योंकि कुर्सी छूटती नहीं मुझसे
एक यही है जो कभी रूठती नहीं मुझसे
मैं बैठा रहूं यी नहीं, इसका मोह जाता नहीं 
अगर ना रहूं इस पर, ये पूछती है मुझसे

तुम फिर कब आओगे, फिर कब आओगे
भ्रष्टाचार के नये दीये फिर कब जलाओगे
जब तक हो चूस लो खून जनता का
अगर चले गये तो प्यास कैसे बुझाओगे

क्या लेना तुम्हें अपने राष्ट्र से
कानून अपना तो डरना किस बात से
जो उठे खिलाफ उसे तुम पिसवा देना
वो हिल्दू या मुस्लिम, तुम्हें क्या लेना जात से

कौन मरा 62,75,2000 में, क्या लेना उससे
जो मुझे पैसे दे, मुझे काम है उससे
मेरा भी घर है, परिवार चलाना है मुझे
जो वेतन है, क्या होता है उससे

देश भले गर्क में जाये, ईमानदारी न होगी मुझसे
अरे ऐसा कुछ बताओ, जो हो जाये मुझसे
मेरा तो बस नाता है राजनीति से
क्योंकि कुर्सी छूटती नहीं मुझसे

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