Monday, November 15, 2010

कॉमनवेल्थ खेल और भारत की अस्मत

देश की राजधानी दिल्ली में १९ वां कॉमनवेल्थ खेल चल रहे हैं। इसी वजह से शहर की शक्ल सूरत बदली बदली दिख रही है। चाहे वह  सड़के हों, फलाईओवर हों, या फिर मेट्रो, हर जगह खेल अपना असर दिखा रहा है। लेकिन मानो अभी कल ही बात लगती है जब इन्हीं खेलों के आयोजन से संबंधित खामियों की गूंज देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी सुनाई दे रही थी। हर जगह थू थू हो रही थी और शायद इसी वजह से सबको यह लग रहा था कि खेलों की मट्टी पलीत होनी तय है। हर जगह बदइन्तेजामी और भ्रष्टाचार ने अपनी काली छाप छोड़ रखी थी जो कि एक अंधे को भी साफ दिखाई दे जाती लेकिन सरकार को दिखाई नहीं दी।

दरअसल खेलों के आयोजन से जुड़े सभी सफेदपोश नेताओं और नौकरशाहों ने अपने पद और आयोजन के पैसे का गलत इस्तेमाल किया जिससे आयोजन का र्खच का बजट १७ प्रतिशत बढ़ कर करीब ७० हजार करोड़ तक जा पहुंचा। इस सारे गोरख धंधे में नेताओं और नौकर शाहों कि वेल्थ बनी और कॉमन आदमी को हर तरफ से परेशानी का सामना करना पड़ा। चाहे वह खाद्य सामग्रीे की आसमान छूती कीमतें हों या बसों और ऑटो के किरायों में हुई वृद्धी हो या फिर बिजली और पानी के किरायों में हुई वृद्धी हो, पिसा आम आदमी ही। इन सब वजहों से देश का कॉमन मैन यह सोचने पर मजबूर हो गया कि यह सब किसके लिये? क्या सरकार को यह नहीं दिख रहा कि इन नीतियों और करों के बोझ तले आम आदमी इतना दबता जा रहा कि उसका सांस लेना भी मुश्किल हो गया है।

इन सब बातों को नजर अंदाज होता गया और भ्रष्टाचार अपना शबाब दिखाते हुये चरम पर विद्यमान दिखा। जब इसकी खबरें भारत सहित विदेशी मीडिया में आने लगी तब कहीं जाकर सरकार को होश आया और आनन फानन में कुछ र्कायवाहीयां की गई। राष्ट्रमण्ड खेलों के आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाणी एंड़ कंपनी हिट लिस्ट में रही लेकिन इस मकड़ा जाल के कई और नामों का खुलासा होना बाकी है।

इन सब घटनाओं के परे ३ अक्टूबर को खेलों ने अपनी ही गति से दिल्ली के दरवाजे पर  दस्तक दे डाली। खेलों का आगाज़ कुछ इस सरीके हुआ कि पूरे विश्व की आंखें फटी की फटी रह गई। सबने यह देखा और जाना कि क्यों अब भारत को विश्व की तीसरी बड़ी शक्ति कहा जाने लगा है। खेलों का उदघाटन समारोह भव्य था और इसे अब तक का सबसे अच्छा उदघाटन समारोह की संज्ञा भी दी गई। देश विदेश के खिलाड़ी आये और भारत की प्राचीन परंपरा 'अतिथि देवा भव:` को जाना। उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रर्दशन देते हुए र्स्वण, रजत और कांस्य पदको पर अपना कबजा जमाया। इन खेलों ने दिल्ली में ही नहीं बल्कि पुरे हिन्दुस्तान में अपने रंगों की खूब छटा बिखेरी जिससे समुचा राष्ट्र रंगों से सराबोर हो उठा।

इसके साथ ही खेलों में भारत के दो चेहरे देखने को मिले। पहला वह चेहरा जिसने भारत की छवी को दाग दार किया और अपने कारगुजारियों के कारण खेलों के इतिहास में एक काला अध्याय बन गया। दूसरा वह भारत जिसके अथक प्रयासों ने समूचे विश्व के सामने भारत की लाज बचाई, देश का नाम रौशन किया और अपने बढ़िया प्रदर्शन के बदौलत खेलों में स्वर्ण, रजत और कांस्य पद जीत कर भारत की झोली में डाला। भारत का पहला चेहरा उन दागी नेताओं, नौकरशाहों और खेलों के दिये गये किट ले कर फरार वॉलंटिर्यस का है और वहीं दूसरा चेहरा खिलाड़ियों का है जो कई तरह के अभावों का शिकार होने के बावजूद न सिर्फ खेलों में भारत को पदक दिलाये बल्कि पद तालिका में राष्ट्र को दूसरे पायदान पर ले आये। दूसरा चेहरा उन खिलाड़ियों का भी है जो पद तो न ला सके मगर अपने अथक प्रयास से खेल भावना को सींचा। सबसे अफसोस जनक बात तो यह है कि भारत का पहला चेहरा दूरसे की वाहवाही लूटना चाहता है। वह चाहता है कि सारा श्रेय उसे मिल जाये लेकिन शायद वह यह भूल रहा है उसी की कारगुजारियों के कारण भारत की नाक नीची हो गई थी और अब जो बड़े ही मशक्कतों के बाद वापिस जुड़ी है।

इनहीं हालातों को मद्दे नजर रखते हुए सरकारें दोषियों को कड़ी सजा देना चाहिये। इस पर केन्द्र सरकार ने एक और कमेटी बनाई है जो कि केन्द्र को अपनी रीर्पोट तीन महीने के भीतर सौंप देगी। उम्मीद की जा सकती है कि सरकार के यह प्रयास भ्रष्टाचार के नाग के फन को कुचलने में कामयाब रहेंगे और ऐसा उदाहरण पेश करेंगे कि फिर कभी भी कोई देश की असमत के साथ खिलवाड़ न करे। केन्द्र और राज्य सरकारों को अपने स्तर पर खेलों के प्रोेतसाहन के लिये भी कदम आगे बढ़ाने होंगे जिससे खिलाड़ियों को और बेहतर प्रर्दशन करने के लिये प्रेरित करे जा कि अभावों में उतना नहीं हो पा रहा।

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