Tuesday, November 16, 2010

दिल्ली मेट्रो- महिला आरक्षण, सुविधा एक असुविधा अनेक

२ अक्टूबर से दिल्ली मेट्रो ने महिलाओं की सुविधा के लिहाज से ट्रेन के पहले कोच को आरक्षित कर दिया है। इस कोच में पुरूषों का प्रवेश निषद ह्रै। शेष तीन कोच पहले की तरह सभी के लिये है अर्थात इन कोचों में पुरूष और महिला दोनों ही एक साथ सफर कर सकते हैं।

दिल्लों मेट्रो ने यह कदम ट्रन में महिलाओं के साथ हुई छेड़ छाड़ की घटनाओं के बाद उठाया है। इस कदम से जहां महिलाओं को सुविधा हुई है वहीं इसकी वजह से कई असुविधाओं ने भी जन्म लिया है। यह असुविधाऐं दानों ही महिलाओं और पुरूषों को वहन करनी पड़ रही है। इन समस्याओं में से कुछ पहले की तरह विद्यमान हैं वहीं कुछ नये उतपन्न हुये हैं। मेरे कहने का तात्पर्य है कि महिलाओं के साथ होने वाली घटनाएं अब भी हो रही हैं, हलांकि इनमें थोड़ी कमी जरूर आयी हैं। लेकिन जो परिवर्तन देखने में आया है वह थोड़ा अजीब है। जहां पहले महिलाओं के साथ छेड़ छाड़ की घटनाओं में पुरूषों की सहानभूति और सहायता मिलती थी वह अब नदारद है। अब यदि कोई व्यक्ति महिला के साथ छेड़ छाड़ की घटना को अंजाम देता है तो सह पुरूष यात्री उसका विरोध करने की जगह तमाशबीन बने रहते हैं। अगर किसी महिला ने विराध किया तो उन्हें बड़े ही असभ्य तरीके से सुनने को मिलता है ''अगर आपको ज्यादा परेशानी हो रही है तो आप लेडीज कोच में क्यों नहीं चली जाती हैं।`` महिलाओं के साथ हुए इस असभ्य व्योहार को पुरूषों का मौन समर्थन मिलता है और बार की तरह महिला ही पिसती है।

मेट्रो की यह पहल पुरूषों और महिलाओं में एक प्रकार का लिंग भेदी स्थिति पैदा कर रही है जहां दोनों साथ हो कर भी साथ नहीं हैं। महिला के उत्तथान के कसीदे पढ़ने वाली सरकार को यह सोचने की आवश्यक्ता है ऐसे देश में जहां महिला और पुरूष के बीच की खाई पहले ही काफी ज्यादा है, जहां अब भी बेटीयों को बोझ समझा जाता है, उस देश में इस तरह के कदम कहां तक सही होंगे? यहां जरूरत उस पुरूष वर्ग को बदने की भी है जो नारी रूप में आदि शक्ति रूपी दुर्गा को पूजता है और उन्हें मां बुलाता है वही बाहर जा कर रावण सरीके हरकत हरता है।

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