Thursday, December 16, 2010

उत्तर प््रादेश: अनाज घोटाला

लगता है जैसे कि देश में घोटालों के उजागर होने की हवा चली है। रोज नित नये घोटालों का उजागर होना जहां एक तरफ इस बात को हवा दे रहा है की देश में भ्रष्टाचार रोज नयी ऊंचाईयां छू रहा है, जिसने सरकारी दावों की कलई खोल कर रख दी है वहीं दूसरी तरफ यह भी साबित कर दिया है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में एक आम आदमी की दशा क्या है?

जहां एक ओर लोकतंत्र विफल होता दिख रहा है वहीं दूसरी ओर मीडिया की सामाजिक भागीदारी भी सामने आ रही है। २ जी स्पेक्ट्रम आबंटन घोटाले के बाद मीडिया के ही माध्ययम से अभी तक का देश का सबसे बड़ा घोटाला सामने आया है। यह घोटाला मायावती शासित उत्तर प्रदेश में किया गया जिसकी रकम २ लाख करोड़ बतायी जा रही है। प्रदेश के बट्टेदारों, नौकरशाहों और सफेद पोशों नेताओं ने केन्द्र द्वारा सरकारी स्कीमों:- जवाहर रोजगार योजना, मिड डे मील और बी० पी० एल० के तहत दिये गये अनाज को न सिर्फ प्रदेश के बाहर बल्कि देश के बाहर नेपाल और बंग्लादेश में काला बाजारी कर मोटी मलाई काटी गई और अनाज के वास्तविक हकदारों को इसकी भनक तक नहीं होने दी।

स्पेशल इन्वेस्टीगेटिव टीम (एस० टी० आई०) और सी०बी०आई द्वारा की गई जांच में कई चौंेका देने वाले तथ्य सामने आये हैं। जैसे- अनाज की इस कालाबाजारी के लिये न र्सिफ ट्रकों बल्कि माल गाड़ियों का भी इस्तेमाल किया गया। जिन ट्रकों का इस्तेमाल हुआ उनके नंबर प्लेट फर्जी थे। जांच के तार कोलकाता के पी० के० एस० लिमिटेड कम्पनी तक भी पहुंचे जिससे साबित हुआ कि अमुख कंपनी ने इस पूरे घोटाले में प्रमुख भूमिका निभाई है।
जहां इसकी आंच प्रदेश विधान सभा तक पहूंची वहीं दूसरी तरफ देश की सबसे बड़ी पंचायत में भी इसकी गूंज बखूबी सुनाई पड़ी। इसके साथ ही जहां दानों पार्टीयों (बसपा और सपा) के नेताओं मायावती (र्वतमान मुख्य मंत्री- चौथी बार)और मुलायम सिह यादव (पूर्व मुख्स मंत्री- तीसरी बार) को सियासत खेलने का एक और मुद्दा मिल गया है वहीं उत्तर प्रदेश में सरकारी तंत्र की कलइ्रर् खोल कर रख दी है। वास्तविक्ता तो यह है कि वर्ष २००२-०७ के पांच वर्षों के अंतराल में दोनों ही मंत्रीयों ने प्रदेश के मुख्य मंत्री का कार्यभार सम्भाला था। ३ मई २००२ से २९ अगस्त २००३ में मायावती तीसरी बार मुख्य मंत्री बनीं तो वहीं २९ अगस्त २००३ से १० मई २००७ तक मुलायम सिंह यादव तीसरी बार मुख्य मंत्री के पद पर बैठे थे और पुन: १३ मई २००७ से अब तक मायावती प्रदेश की मुख्य मंत्री बनी हुई हैं।

अनाज की बोरियों में बंद इस घोटाले ने जहां एक तरफ यह साबित किया है कि प्रदेश सरकारें गरीबों के हितों का कितना ध्यान रखते हैं वहीं यह भी सिद्ध किया है कि नेता और नौकरशाह अपने व्यक्तिगत लाभ के लिये कितने नीचे गिर सकते हैं। इस पूरे मामले की जांच हाई कोर्ट के निर्देष पर सी०बी०आई द्वारा कि गयी जो कि पहले सुविधाओं की कमी का हवाला देते हुए पूरे मामले से पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रही थी। लेकिन इस घोटाले में कौन कौन शामिल हैं उनके नाम अभी सामने नहीं आ पाये हैं। लिहाजा जांच एजेंसीयां अब भी वहीं पर खड़ी हैं जहां वह पहले दिन खड़ी थीं क्योंकि उनके पास सवाल तो कई हैं लेकिन जवाब एक भी नहीं सूझ रहा है। इन सवालों में से जो सबसे अहम सवाल है कि आखिर जांच शुरू की जाये तो कहां से? उत्तर प्रदेश में कुल ७० जिले हैं और अभी तक जो कुछ भी सामने आया है वह सिर्फ ४० जिलों का काला चिट्ठा है, यानी कि अभी ३० जिले जांच की जद में नहीं आये हैं।

वर्ष २००६ में मुलायम सिंह द्वारा ई० ओ० डब्लू (इकोनॉमिक ऑफिस विंग) से कसई जांच में र्सिफ बलिया जिले में ही ५० केस र्दज किये गये थे। जैसे जैसे जांच आगे बढ़ेगी वैसे इस सम्भावना को और बल मिलता जायेगा कि घोटाले की यह रकम अभी और बढ़ सकती है। वैसे यह भी बताते चलें कि देश का दामन काफी पहले से घोटालों के दागों से दागदार होता रहा है। चाहे वह २ जी स्पेक्ट्रम आबंटन का घोटाला हो या फिर शहीदों के लिये बने मकानों वाला आर्दश सोसाईटी घोटाला या राष्ट्रमण्ड खेल घोटाला या कॉफिन घोटाला या फिर बोर्फोस घोटाला, इन सभी दो बातें सिद्ध की है। पहला यह कि इनकी संख्या इतनी है कि शायद आप अपनी अंगुलियों पर भी गिन न पायें और दूसरी कि हमारे देश में भ्रष्टाचार पिछले दशकों की अपेक्षा बढ़ी है।

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