Tuesday, July 13, 2010

अंग्रजी के सामने सिसक्ती हिन्दी

भारत जिसे राजा भरत के नाम पर या हिन्दुस्तान या जिसे अंग्रेजों ने जिसे इंड़िया बुलाया एक संप्रभू राष्ट्र है। यह राष्ट्र अपने अंदर कई भाषाऐं समाहित किये हुये है। इन्हीं में से एक हिन्दी है जिसे अनुच्छेद 8 के अंतर्गत राज्य भाषा का दर्जा हासिल है। लेकिन इस देश की सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि इसे अपनी ही भाषा की सुद लेने की फुरसत नहीं है। आज हिन्दी अपने ही देश में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है।

आज कोई भी भारत का शिक्षित नागरिक हो या सरकार, सभी को आंग्ल भाषा या यंू कहें की अंग्रेजी ने अपने गिरफ्त में कुछ ऐसे ले रखा है जिससे वे हिन्दी पर अपना ध्यान केन्द्रित ही नहीं कर पा रहे हैं। आज सरकारी दफतरों से लेकर नीजी उद्योगों के दफ्तरों तक, यहां तक की हमारे न्यायलय में भी हिन्दी के आगे हिन्दी हावी दिखाई देती है। आज अंग्रजी का आलम ये हो गया है कि चाहे वा कोई स्कूल जाता बच्चा हो या फिर एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति सभी अंग्रजी के पीछे बेतहाशा भाग रहे हैं। अगर सरकारी विद्यालयों को छोड़ कर नीजी विद्यालयों की बात करें तो वहां हिन्दी के अलावा बाकी सभी विष्य अंग्रेजी में होते हैं। स्वंय माता पिता भी जानते हैं कि आज हिन्दी का आलम क्या है, इसी वजह से वे अपने बच्चों को अंग्रेजी की ओर दौड़ा देते हैं जिससे उन्हें बड़े होने पर अनपे जीवन व्यापन के लिये नौकरी मिल जाये। आज भारत का पढ़ा लिखा वर्ग अंगेजी को उच्च वर्ग से जोड़ कर देखता है और कोशिश करता है कि उनकी सुबह अंग्रेजी से शुरू हो और रात अंग्रेजी पर ख़त्म। सपनों से ले कर बातों तक और खयालों से ले कर खानों और सोने तक सब कुछ अंग्रेजी में ही करना चाहते हैं। बड़े आसानी से उन्हंे इस जुगत में देखा भी जा सकता है।

मैं यहां पर किसी भाषा पर सवाल नहीं उठा रहा हुं बल्कि यहां पर हिन्दी की वर्तमान स्थिति को रखने की कोशिश कर रहा हंू। मैं अपने इस लेख से अपनी मात्र भाषा हिन्दी के प्रति लोगो को पुनः जाग्रित करना चाहता हुं ताकी वह अपने देश को भारत बुलाएं न कि अंगेजों द्वारा दिया इंड़िया। मैं यह भा जानता हंू कि शायद मेरे बड़े मुझसे एक राय न हों पर मैं एक बात जाना हंू कि शुरूआत कहीं से तो होनी है और ये शुरूआत किसी ने तो करनी थी। भारत के लिये इससे बड़ी विडम्बना और क्या होगी कि उसे हिन्दी की रक्षा के लिये हिन्दी दिवस मनाना पड़ता है। हिन्दी की इस दयनीय अवस्था से हम सभी भारतीयों को जरूर शर्मसार महसूस करना चाहिये।

मैंने एक बार एक अंग्रेजी के प्रख्यात दैनिक समाचार पत्र में हिन्दी की इस दयनीय अवस्था के बारे में पढ़ा और सोचने लगा कि क्या ज़माना आगया है और मन ही मन हंसने लगा कि जिस भाषा ने हिन्दी का ये हाल किया है वही अब हिन्दी के वर्तमान हालात के बारे में बता रही है। यहां सोचने की ज़रूरत है कि अगर आने वाले दिनों में हिन्दी का यही हाल रहा तो कहीं हमें अपने बच्चों से ये न कहना पड़े कि "Children learn this language. It is Hindi. It is our National Language."

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