Wednesday, July 14, 2010

आनर किलिंग...........सोचिये!

बरसों से हमारे देश ने प्यार और प्यार करने वालों को अपने दिलों में खास जगह दी है। बरसों से कृष्ण और राधा के रूप में पूजते आ रहे हैं और हीर रांझा, सोनी महीवाल जैसे प्रेमियों को अपने जहन में एक खास जगह देकर जिन्दा रखा है। हमारे फिल्म जगत ने भी प्यार और प्यार करने वालों पर न जाने कितनी फिल्में बनाई हैं और आगे भी न जाने कितनी बनाता रहेगा।

मगर जहां हमारा समाज फिल्मों में प्यार को खूब सराहता है वहीं उसके जीवन में शुमार होने पर बौखला उठता है। जब उनके बच्चे प्यार की राह में अपने कदम आगे बढ़ाने लगते हैं तो सारा परिवार या यूं कहंे कि सारा समाज उनके खिलाफ हो जाता है। कभी कभी तो ये खिलाफत इतनी आगे बढ़ जाती है कि वे इन्सानियत की सारी हदें पार कर अपने लख़ते जिगर के टुकड़ों को मौत के घाट उतारने से भी गुरेज नहीं करते।

लेकिन ये कभी कभी होने वाल घटनायें आज कल आम हो चली हैं। आज समाचार पत्रों में माता पिता द्वारा अपनी झूठी इज्ज़त के नाम पर बरपाई गई कहर सुर्खियां बटोरती नजर आती हैं। पहले जहां शुरूआत पंजाब से हुई वहीं दिल्ली और आस पास के इलाके इसकी आंच से खुद को बचा नहीं सके और उसमें अपने जिगर के टुकड़ों को जला ड़ाला। आज झूठी शानोशौकत के नाम पर प्यार के दुश्मन पूरे भारत में अपना कहर बरपा रहे हैं। चाहे वह खाप पंचायत हो, एक गोत्र में विवाह का मामला हो या फिर प्यार की हत्या यानी आनर किलिंग का, अपने ही अपनों का खून बहाते नजर आ रहे हैं। देखा जाये तो आज पूरे भारत में प्यार के दुश्मन कहीं न कहीं दो दिलों का बेरहमी से गला घोंट रहे हैं। सरकार भी इस मामले पर परेशान है क्योंकि न तो इस मसले से संबंधित कोई कानून है और न ही कोई ठोस उपाय जिसे अपनाया जा सके। ऊपर से कानून व्यवस्था की जो धज्जियां उड़ रही हैं वा अलग।

लोग या समाज चाहे इसके लिये कोई भी दलील क्यों न दे लेकिन सच तो यही है कि माता पिता उन्हें ही मौत के घाट उतार रहे हैं जिनके लिये उन्होंने ही कई बार उनके सपनों के लिये अपने सपनों की कुरबानी दी होगी। माता पिता का ये अमानवीय रवैया हमारे सभ्य समाज के उस चेहरे को उजागर करता है जिसे अभी तक शर्म, लिहाज, आदि के नाम पर अभी तक छिपाया जा रहा था। कहने को भारत 2020 तक ख़ुद को विकसित देशों के नामों में शुमार देखना चाहता है लेकिन इस जो हमारे समाज की कूरीतियां हैं उनसे कैसे पार पाया जाये, बड़ा सवाल है। ज़रा सोचिये कि क्या ये सही है कि अपने झूठी शान और शौकत के नाम पर अपने ही नौनिहालों को मौत के घाट उतार दिया जाये। ये शानो शौकित किस काम की जो अपने बच्चों की लाशों पर खड़ी की जाये। अगर यह सही है तो प्यार के नाम पर अब तक की सारी मान्यतायें, परम्परायें सिर्फ एक ढ़कोसला हैं। और अगर ये सब एक ढ़कोसला है तो फिर इसे क्यों मानते आ रहे हैं, छोड़ क्यों नहीं देते? सवाल अब भी अपना मुहं खोले हमारे सामने खड़ा है और हमसे ये पूछ रहा है ज़रा सोचिये............!

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