Friday, June 4, 2010


ज्ञानेव्श्ररी एक्सप्रेस पर नक्सली हमला

आज नक्सलियों ने मानवता की हदों का तब पार कर दिया जब एक ट्रेन हादसे में 150 से अधिक लोग मारे गये और 200 से ज्यादा घायल हो गये। ये नक्सली कहर ज्ञानेश्रवरी एकप्रेस पर अब तक का सबसे बडा नक्सली हमला है। ये ट्रेन गुरूवार रात 11 बजे मुंबई के लिये रवाना हुई थी मगर जैसे ही यह माओवादी प्रभावित खेमाशोली रेलचे स्टेशन को पारकर झाडग्राम थाना अंतर्गत राजबंध क्षेत्र में पहंुची, वैसे ही यह वारदात हुआ। इस हादसे में ट्रेन की 13 बोगियां पटरीयों से उतर गई और डाउन ट्रैक पर आरही माल गाडी से भिडंत हो गई। इस भिडंत का खासा असर कोच संख्या एस 3, एस 4, एस 5, एस 6 और एस 7 पर पडा जोकी बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई। इनमें से भी कोच संख्या एस 3, एस 4, और एस 5 बहुत ज्यादा प्रभावित हुये जिनमें से किसी के भी बचने की उम्मीद बहुत कम थी। घटना के बाद दक्षिण-पूर्व रेलवे ने बचाव का काम शुरू कर दिया था और जिसमें बाद में चायू सेना ने भी अपना योगदान दिया।

ट्रेन की पटरी को देख कर यह कयास लगाया जा रहा है कि पटरी को बम धमाके से उडाया गया है और साथ ही यह भी कयास सामने आया कि ट्रैक को उडाया नहीं गया है बल्कि फिश प्लेट गायब की गई है। ट्रेन के ड्रइवर का भी यह कहना था कि उसने भी धमाके की आवाज सुनी थी। मगर जो दृश्य टीवी पर दिखाये जा रहे थे उन्हें देख कहीं से ये नहीं लग रहा था कि ट्रैक कों धमाके से उडाया गया है बल्कि यह लग रहा था कि पटरी को काटा गया है और फिश प्लेट को गायब की गयी है। इस मसले की जांच के लिये रेल मंत्री ममता बनर्जी ने पूरे प्रकरण की जांच सीबीआई से करवाने की बात भी कही।

मगर यह बेहद अफसोस की बात है कि जहां घायलों और मृतकों से सहानभूति और नक्सलियों पर नकेल कसने का प्रयास किया जाना चाहिये था वहीं इस घटना को मुद्दा बना कर सियासत खेली जा रही है और साथ ही इस वारदात के बाद बेतुके उपायों पर काम किया जा रहा है। बेतुके उपायों से मेरा तात्र्पय सरकार के उस फैसले से है जिसमें कहा गया है कि सरकार रात को नक्सली इलाकों में ट्रेनें नहीं चलाने पर विचार कर रही है। इससे सीधा सीधा अभिप्राय यह निकलता है कि अगर कोई हादसा सूरज की किरणों के नीचे होगा तो सरकार ट्रेनें दिन में भीनहीं चलायेंगी। अर्थत ट्रेनों का रात में चलना तो पहले से ही बंद है और अगर दिन में कोई हादसा होता है तो ट्रेनें दिन में भी नहीं चलेंगी जिससे कि पूरी रेल यातायात ठप हो जायेगा। मेरे विचार से सरकारों और मंत्रियों को बचपना छोड अपने विवेक से काम लेना चाहिये।

वहीं इस मामले को सीयासी जामा पहनाते हुये रेल मंत्री ममता बनर्जी ने वाम दलों पर राजनीतिक षड्यंत्र रचने का आरोप लगाया है। लेकिन जब यह पहले ही हो चुका है कि ये हमला नक्सलियों द्वारा किया गया है तो फिर मामता बनर्जी ने इस हादसे को सियासी रंग क्यों देने की कोशिश कर रही हैं जब कि नक्सली हमले की धमकी पहले ही दे चुके थे। लगता है कि वे कुर्सी की शक्ति ने उन्हें इस कदर अंधा कर दिया है कि चे अब उसे किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती हैं और शायद यही सोच कि इससे पहले वाम दल और विपक्ष उन्हें घेरे उन्होंने पहले हमला बोल दिया।

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