Friday, June 11, 2010


भोपाल गैस कांड और ग्लोबल मीडिया की लताड

भोपाल गैस कांड पर जबसे फैसला आया है तब से सरकार पर भारत समेत पूरे विश्व के मीडिया की भौएं तिरछी हो गई हैं। भरतीय मीडिया ने तो अपना विरोध जताया ही है और सरकार और कानून व्यवस्था को जम कर खरीखोटी सुनाई है मगर अब इस मामले पर विश्व मीडिया का विरोध भी सामने आया है। ग्लोबल मीडिया ने इस मसले पर सरकार के रवैये को संवेदनहीन करार देते हुए कडी निंदा की है। उन्होंने आरोप लगाया है कि सरकार जानबूझ कर कारपरेट जिम्मेदारी जैसे मसले पर भ्रामक रूख अपनाये हुए है जिससे कि विदेशी निवेशकों को निवेश हेतु ललचाया जा सके।

घटना के लगभग 26 साल बाद आये फैसले को नाकाफी बताते हुए इसे एक भद्दा मजाक बताया है। अंतराष्टीªय मीडिया का कहना है कि इसकी पूरी जिम्मेदारी सरकार और न्याय व्यवस्था कि है। कइ्र्र अख्बारों ने इस पूरे मामले को विवादित परमाणु दायित्व बिल के साथ जोड कर भी देखा है। आरोप यह भी लगाये गये है कि सरकार ने इस मामले पर लचर रूख अपना कारपोरेट दायित्व पर नरमी इस लिये बारती है ताकि विदेशी कंपनियों को भारत में निवेश करने के लिये ललचाया जा सके।

देखा जाये तो अंतराष्ट्रीय मीडिया का कारपोरेट दायित्व पर नरमी का आरोप सही लगता है क्योंकि भारत साढे नौ फीसदी की सालाना विकास दर पर चल कर एक महाशक्ति बनने का सपना संजोये बैठा है वह पूरा नहीं हो सकता है। विदेशों से जितना अधिक निवेश करेंगे भारत को उतना अधिक विदेशी मुद्रा मिलेगी, लोगो को रोजगार मिलेगा और धीरे धीरे भारत विकास के पथ पर आगे बढता रहेगा। मगर विकास के लिये इतनी बडी कीमत चुकाना क्या सही है? सरकार को उन बच्चों पर जरा सी दया नहीं आयी जिन्होंने अभी दुनिया भी नहीं देखी और उससे पहले ही लौ बुझ गई? सरकार लोगों की हितैशी बनती है तो फैसला एंडरसन के पक्ष में कैसे चला गया। इसका सीधा सीधा अर्थ तो यही निकलता है सरकार का सबकुछ किया एक ढोंग के अलावा कुछ नहीं है।

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