Friday, June 11, 2010


भोपाल गैस कांड

26 साल के लंबे इन्तेजार के बाद जब भोपाल गैस कांड का फैसला आया तो पीडितों समेत सभी लोगों के होश ही फक्ता हो गये। जिस हादसे को इतिहास के सबसे भयावह हादसों की संज्ञा दी गई हो और जिसमें 15000 से अधिक जाने लील ली गई हों उसके दोषियों को महज दो साल की सजा सुनाई गई है। हद तो तब पार हो गई जब दोषियों को जमानत पर रीहा भी कर दिया गया। अगर इन सब के बाद सरकार कुछ क्षण के लिये ही सही कहीं मुहं छिपा कर बैठ जाये तो इसे ईमानदार प्रतिक्रिया कहने में गुरेज नहीं होनी चाहिये।

इस मामले पर अगर न्यायविदों की मानें तो इस तरह की घटनाओं के लिये कानून का अभाव है, जिसके तहत अभियुक्तों को सजा मिल सके। लेकिन जो भी हो इस मामले में जांच एजेन्सी सीबीआई और सरकार के नकारात्मक रूख पर सवालिया निशान जरूर लगाया है कि क्या सरकार की नजरों में लोगों की जान की कोई कामत नहीं है। अगर है तो मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन को मुल्क छोडने कैसे दिया या यूं कहें तो भगाया कैसे? सवाल इस पर भी खडा होता है कि न्यायलय में केस फाइल करने से पहले मामला धारा 304 (ए) के अंतर्गत दर्ज किया था लेकिन जब मामला न्यायलय में पहुंचा तो उसे धारा 304 (2) के अंतर्गत बना पेश किया गया जिसमें अधिक्तम सजा 2 साल की है।

लेकिन सबसे मजेदार बात तो यह रही कि 15 हजार से अधिक लोगों की मौत पर जो लोग पिछले 25 वर्षों से चुप थे, उन्हें फैसला आने के बाद एक दूसरे पर छींटा कशी करते और सफाई देते देखना दुर्भाग्यपूर्ण है। मामले से जुडे सीबीआई के एक भूतपूर्व अफसर का कहना है कि विदेश मंत्रालय के स्पष्ट निर्देश के वजह से उन्होंने मुख्य आरोपी एंडरसन के प्रत्यर्पण का मामला आगे नहीं बढाया। इसके जवाब में तब और अब की सत्तारूढ पार्टी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और मौजूदा कानून मंत्री विरप्पा मोइली ने कहा कि बौतर जांचकर्ता अगर वे चाहते तो किसी भी दबाव की परवाह किये बगैर अपना काम आगे बढा सकते थे। जैसा मुंबइ्र्र हादसे को ब्लैक फ्राईडे के नाम से जाना जाता है वैसे ही 7 जून, 2010 को भी अपनी मानवता के खिलाफ के रूप में याद किया जाये तो यह कोई अतिशियोक्ति नहीं होगी।

इस मामले को तत्कालीन चीफ जस्टिस आफ इंडिया ए0 एम0 अहमदी ने कार हादसे की तरह देख व्यंग सरीखे रखने की कोशिश की है। उनके अनुसार यदि किसी कार हादसे में किसी की मौत हो जाती है (जब कार ड्राइवर कार चला रहा हो) तो गलती उनकी नहीं कही जा सकती है। इस तरह की बयान बाजी और मामले पर फैसले के बाद मुख्य अभियुक्त एंडरसन को लेकर सरकार का लचर रवैये पर पीडितों के हालात पर एक शेर याद आता है कि
‘मेरा मुंसिफ ही मेरा कातिल है
मेरे हक में फैसला क्या देगा।’

3 comments:

  1. राजनीति है भाई... बहुत गन्दी राजनीति है.

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  2. सही बात है शेर इस बात पर लागू होता है आभार्

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  3. मामू पोस्ट तो अच्छी है पर यार ब्लॉग का नाम आकाशवानी क्यों रखा है आकाशवाणी सही शब्द होता है। सुधार लें तो अच्छा रहेगा।

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