Sunday, May 16, 2010



फिर आनर किलिंग

मुझे याद है, मैंने अपने बचपन में एक फिल्म देखी थी और जो बाद में अक्सर टी0 वी0 पर भी आने लगी, जिसका नाम था ‘दिल वाले दुलहनियां ले जायेंगे’। इस फिल्म के मुख्य किरदार थे शारूख खान और काजोल। यह एक लव स्टोरी थी जिसकी अधिक्तर शूटिंग पंजाब में दिखाई गई है। इस फिल्म में काजोल एक पंजाबी घर में पैदा होती है जो पिता अमरीश पुरी के देख रेख में चलता है। एक दिन काजोल को शरूख से प्यार हो जाता है। ये बात जब अमरीश पूरी को पता चलता है तो वे अपना बोरिया-बिस्तर समेट पंजाब अपने घर लौट जाते हैं। शारूख भी पीछे-पीछे पंजाब पहुंच जाता है। अंत में अमरीश पूरी काजुल का हाथ शारूख के हाथ में दे देते हैं।

यह फिल्म अपने वक्त की सबसे बडी हिट फिल्म थी जिसने न टूटने वाले कई रीकार्ड बनाये। ये फिल्म बाकी जगहों में भी उतनी ही पसंद आयी जितनी की पंजाब में। यही नहीं बल्कि प्रम प्रसंगों पर बनी बाकी फिल्मों को भी पांजाब में बडा ही पसंद किया जाता रहा है।

मगर सबसे बडी विडम्बना यह है कि जहां एक प्यार की कहानी को पंजाब ने सराहा वहीं दूसरी को हमेशा के लिये खत्म कर दिया और हमेशा के लिये ऐसा घाव दे दिया जिसे भरा नहीं जा सकता। मैं बात कर रहा हंू गुरलीन (19 साल) और अमनप्रीत (25 साल) की। दोनों ने गुरलीन के परिवार के मर्जी के खिलाफ जा कर पिछले महीने हरियाण और पंजाब कोर्ट की सुरक्षा में शादी रचा ली थी। ये बात गुरलीन के परिवार में पिता, भाई, और चाचा को नागवार गुजर और मंगलवार को को उन्होंने गुरलीन को उनके खिलाफ जाने की सजा दे दी। इस में अमनप्रीत की मां कुलजीत गेहंू में घुन की तरह पिस गई। तीनों ने मिल कर गुरलीन और कुलजीत की हत्या कर दी और अमनप्रीत पर भी जानलेवा हमला किया। गुरलीन को तलवार से और कुलजीत को गोली मारी गई जिससे दोनों की मौके पर ही मौत हो गई। पुलिस के अनुसार गुरलीन के गले पर काटे जाने के निशान थे और उसकी अंगुलियां भी काटी गई थी। इसके बाद हमलावरों ने अमनप्रीत को अपना निशाना बनाया और उसे गलियों में दौडा कर उसे गोली मर दी जिससे वह घायल हो गया। बाद में अमनप्रीत को घायल अवस्था में अस्पताल में भरती कराया गया। अमनप्रीत के पिता घर से बाहर गये थे इस लिये वे इस हमले से बच गये। हमलावरों ने अमनप्रीत के बूढे दादा और दादी को छोड दिया।

इस घटना के बाद मेरे जहन में एक गुरलीन और अमनप्रीत की गलती क्या थी जो उन्हें उसकी इतनी बडी सजा मिली। क्या उनकी गलती ये थी कि उन्होंने एक दूसरे से प्यार किया और एक दूसरे को शादी जैसे पवित्र रिशते में बांध ले गये। अगर ये उनकी गलती है तो फिर उन्हें किस बात की सजा मिली? और अगर ये गलती थी तो ये गलती तो सदियों पहले से चली आ रही हैं जिनकी हम अक्सर मिसालें भी दिया करते हैं जैसे- हीर और रांझा, सोनी और महीवाल। प्यार के इस ढकोसले बाजी पर मुझे एक शायर का शेर याद आता है -

‘‘र्भमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा,
हमारे दिल में कोई प्यार जो पल बैठ तो हंगामा,
अभी तक डूब के सुनते थे हर किस्सा मोहब्बत का,
जो किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा।’’

ये बात उन लोगों पर सटीक बैठता है जो फिल्मों में तो प्यार को सही मानते हैं मगर उनके पीरवार का कोई व्यक्ति प्यार करता है तो ये बात उनके हलक से नीचे नहीं उतरती। उस वक्त वे दलील देते हैं कि ये सब बातें फिल्मों में ही अच्छी लगती हैं असलियत में नहीं। यहां पर हमें और उन सभी लोगों को दाबारा सोचने की जरूरत है कि क्या वाकई प्यार करना गलत है? कम से कम मैं तो इससे इत्तेफाक नहीं रखता क्योंकि राधा और कृष्ण के रूप में हम प्यार को न जाने कबसे पूजते आ रहे हैं तो हम इसे गलत कैसे मान सकते हैं।

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