Friday, May 7, 2010



डीटीसी का घाटा बरकरार

एक तो मंहगाई ऊपर से डीटीसी ने भाडा बढा कर लोगों के जेबों पर यह कह कर कैची चलायी की डीटीसी घाटे में चल ही है। जहां पहले किराये के चार श्रेणीयों 3, 5, 7, और जिसे बढा कर 5, 10, और 15 की तीन श्रेणीयों में बांट दिया गया। निसंदेह डीटीसी को इससे फायदा हुआ और उसकी आमदनी में इजाफा भी हुआ। मगर इसके बावजूद भी डीटीसी का घाटा बरकार है। इस घाटे को बिना किराया बढाये भी पाटा जा सकता था बशर्ते डीटीसी अपने आंतरिक कमियों को पूरा करे। असल में घाटे कि वजह ड्राइवरों और कंडक्टरों की कमी है जिसकी वजह से सैकडों की तादाद में बसें डीपो में ही खडी रह जाती हैं। इस वजह से डीटीसी को रोज 30 लाख का नुकसान हो रहा है।

दरअसल डीटीसी ने कामनवेल्थ गेम्स के मद्दे नई बसें तो खरीद ली मगर उनको चलाने के लिये ड्राइवरों और कंडक्टरों की भरती नहीं की। इसका नतीजा यह कह हुआ कि रोजाना सुबह 500 और शाम को 1500 से भी ज्यादा बसें डीपो से बाहर नहीं आ पाती। इस वक्त डीटीसी के बेडे में 4800 बसे हैं जिनमें से 2679 पुरानी स्टैंडर्ड की और 1786 नान एसी लो फ्लोर के अलावा 294 एसी लो फ्लोर भी हैं।

रोज सुबह सडकों पर उतरने से पहले उनका खाका बनाया जाता है इसके बावजूद सुबह और शाम की पालीयों में सैकडों बसें डीपो से बाहर निकल ही नहीं पाती हैं। अगर ये माने कि एक डीटीसी बस एक दिन में 1500 रू0 कमाती है तो डीटीसी को एक दिन में करीब 30 लाख 66 हजार का नुक्सान हुआ। इस तरह महीने का हिसाब 10 से 12 करोड रूपये हुआ।

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