फतवा - क्या वाकई हक में?
देश की सबसे बडी मुस्लिम संस्था दारूल उलूम देवबंद ने एक फतवा जारी किया है। इसमें कहा गया है कि मुस्लिम महिलाओं का ऐसी किसी सरकारी या नीजी संस्थान में नौकरी करना गैर इस्लामी है, जिसमें महिला और पुरूष को एक साथ काम करना पडता है और महिलाओं को पुरूषों से बिना परदे के बात करनी पडती है। इस फतवे का दूसरे मुस्लिम सेप्रदायों ने भी समर्थन किया है।
इस फतवे से ऐसा लगता है कि मुस्लिम महिलाओं का आगे बढना मुस्लिम पुरूषों को गवारा नहीं है। वे नहीं चाहते कि उनके घर की महिलाये बाहर निकलें और अपनी योग्यता के मुताबिक काम करें। क्योंकि ऐसा तो संभव ही नहीं है कि लोग काम पर निकलें और विपरीत लिंग के व्यक्ति से उनका सामना ना हो।
यहां पर एक सवाल और खडा होता है कि क्या यह फतवा सिर्फ भारत के मुस्लिम महिलाओं के लिये है या फिर सभी मुस्लिम महिलाओं के लिये है। क्योंकि मुस्लमान सिर्फ भारत में ही नहीं रहते बल्कि पूरी दुनिया में रहते हैं। अगर ये फतवा सिर्फ भरतीय मुस्लिम महिलाओं के लिये है और बाकी और देशों में रह रहे मुस्लमानों के लिये नहीं है तो ऐसा क्यों है? ये नाइन्साफी सिर्फ भरतीय मुस्लिम महिलाओं के साथ ही क्यों? और अगर ये फतवा पूरी दुनिया के मुस्लिम महिलाओं के लिये है तो मुझे नहीं लगता कि अमेरीकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा कि पत्नी मिशैल हुसैन ओबामा, निगार खान, गौहर खान, जिया खान, शबाना आजमी, वहीदा रेहमान, सानिया मिर्जा या शेख हसीना पर भी ये फतवा लागू होगा। इसका मतलब ये हुआ कि अबसे मिशैल हुसैन ओबामा अपना काम छोड देंगी और अपने पति के साथ किसी भी देश की यात्रा पर नहीं जयेंगी, निगार खान और गौहर खान जैसी फैशन हस्तियां फैशन जगत से अपना नाता तोड लेंगी, जया खान, शबाना आजमी और वहीदा रेहमान अदाकारी छोड देंगी, सानिया मिर्जा (सानिया मलिक) अब टेनिस खेलना बंद करदेंगी और शेख हसीना राजनीती को हमेशा के लिये अलविदा बोल देंगी। मुझे नहीं लगता कि ऐसा कुछ होने वाला है। चूंकी ये सही है कि ऐसा कुछ नहीं होने वाला है तो ऐसा फतवा लाने की क्या जरूरत है जिनसे सिर्फ महिलाओं का शोषण हो। क्यों न ऐसा फतवा लाया जाये जिससे मुस्लिम महिलाओं का उत्तथान हो और उन्हें आगे बढनें में सहायता मिले।
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