Sunday, May 9, 2010


स्याही ने दी गोली को फांसी, फांसी से बचाव के कई रासते हैं।

60 घंटे का आतंकी कहर, 166 की मौत और 304 घायलों को इन्साफ आखिरकार मिल ही गया। उज्जवल निकम की दलीलों अैर सबूतों के सामने चाव पक्ष के वकील के0 पी0 पवार की एक न चली। पेषल जज एम0 एल0 ताहिलयानी ने अपने फैसले में कहा कि ...पाकिस्तान के लश्कर-ए-तैबा से मिलकर साजिश की उसके लिये मौत, खून किया उसके लिये मौत और भारत सरकार के खिलाफ जंग छेडी उसके लिये मौत ...कसाब को मरते दम तक मौत की सजा दी जायेगी,,,अगर इसे जिन्दा रखा गया तो कंधार जैसे मामले की आशंका है, जहां अपहरण किये गय विमान के बदले आतंकवादी को छुडाया गया...

...कसाब को जिंदा रखना समाज और भारत सरकार के लिए खतरा है। उसके सुधरने की उम्मीद करना फिजूल है। कसाब भारत पर हमला करने के लिये तडप रहा था, उसने अपनी मर्जी से आतंक की राह चुनी ...उसे फांसी देने के अलावा कोई और दूसरा आप्शन नहीं है।

विशेष अदालत के फैसले ने पीडितों के जख्मों पर मरहम तो जरूर लगाया होगा मगर फैसले के बावजूद भी सजा मिलने अब भी कई साल लग सकते हैं। क्योंकि फांसी के सजा के बाद भी कसाब के पास अपील के कई रासते हैं। कसाब 60 दिन के अंदर एक अर्जी हाई कोर्ट में दाखिल कर निचली अदालत के फैसले को चुनौती दे सकता है। आगर अपील स्वीकार कर ली जाती है तो केस की सुनवाई फिर से होती है। अगर हाई कोर्ट निचली अदालत के फैसले को कायम रखता है तो मुजरिम सुप्रीम कोर्ट में स्पेश्ल लीव पिटिशन (एसएलपी) दाखिल कर सकता है। अगर एसएलपी स्वीकार कर लिया जाता है तो फिर से सरकारी पक्ष के वकील के पास नाटिस भेजी जाती है और फिर मामला खंडपीठ के सामने आता है। अगर सुप्रीम कोर्ट फैसले को बरकरार रखती है तो मुजरिम सुप्रीम कोर्ट के सामने रिव्यू पिटिशन और क्यूरेटिव पिटिशन दायर कर सकता है। अगर ये दोनो याचिकायें भी खारिज होजायें मुजरिम राष्ट्रपति के सामने आर्टिकल 72 के तहत मर्सी पिटिशन दायर कर सकता है। फिलहाल 32 मर्सी पिटिशन पेंडिग हैं जिसमें से संसद भवन पर हमले का आरोपा अफजल गुरू की पिटिशन भी शामिल है।

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