Wednesday, May 12, 2010


ऐसा क्यों है?

शीला दीक्षित को धमकी देने वाले शक्स को दिल्ली पुलिस ने दो दिनों के अन्दर गिरफतार कर लिया। पुलिस के अनुसार उसका नाम वीर सिंह है और उसने ये धमकी भरे फोन नरेला से चोरी किये फोन से किया था। पुलिस के अनुसार र्फश विहार निवासी ने सोचा था कि अगर वह चोरी के फोन से धमकीयां देगा तो वह पकडा नहीं जयेगा पर ऐसा हुआ नहीं और वह पकडा गया। इस कारनामें के बाद पुलिस खुद की पीठ जरूर थपथपा रही होगी। कहीं न कहीं इस बात की शाबाशी शीला दीक्षित भी पुलिस को इस बधाई का पात्र मान रहीं होंगी की पुलिस बडी ही तत्परता के साथ उन्हें फोन पर धमकी देने वाले शक्स को पकड लिया मगर सवाल यहां इस बात का उठता है कि अगर यही कुछ किसी व्यक्ति या यूं कहें कि किसी आम आदमी के साथ होता है तब पुलिस की ये तत्परता कहां चली जाती है। क्या आम आदमी यह समझे कि पुलिस सिर्फ राजनेताओं, उनके सगे संबधियों, रूसूख दार लोगों के लिये ही काम करती है और जब एक आम आदमी अपनी शिकायत लेकर पुलिस के पास जाता है तो पहले तो उसकी कोई सुनता नहीं। अगर उस बेचारे पर किसी पुलिस वाले को तरस आ गया तो एफआईआर तो र्दज हो जयेगी पर उसकी सुनवाई नहीं होगी। इसके लिये बडा ही साधरण सा उदाहरण फोन चोरी होने कि शिकायत दर्ज कराने की। अगर किसी का फोन चोरी हो गया है तो उसे सादे कागज पर ये लिखना पडता है कि उसका फोन चोरी नहीं हुआ है बल्कि गुम या गायब हुआ है। अगर कोई यह लिख के भी लेजाता है कि उसका फोन चोरी हुआ है तो मौके पर मौजूद वर्दी धारी चोरी को काट कर गायब लिखने को कहता है। ये जानकारी सिर्फ सादे कागज में ही रह जाती है, इसे रजिस्टर में चढाया नहीं जाता है। बस आवेदन पत्र पर मोहर लगाके दे दी जीती है। आगर आप खुशनसीब तो मौके पर मौजूद वर्दीधारी आपसे पैसे नहीं मांगेगा वरना कई जगहों पर मोहर मारने के भी पैसे देने पडते हैं। यह मोहर लगा आवेदन पत्र इस बात का सबूत है कि आपकी शिकायत पुलिस ने सुन ली है। अगर पुलिस सर्विलांस के जरिये अपराधी तक पहुंच सकती है तो यही सुविधा आम नागरिक के लिये क्यों नहीं है।

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